डॉ स्वामी श्यामानन्द सरस्वती
( उपर्युक्त सभी त्रिवेणियों में 13-13 मात्राएँ हैं,अन्त में 2-1-2 मात्राएँ हैं। तुक किन्हीं भी दो पंक्तियों का मिल सकता है । स्वामी जी 26 नवम्बर को 92 वर्ष के हो जाएँगे । आज भी काव्य साधना में लीन हैं । ये त्रिवेणियाँ इनके सद्य प्रकाशित संग्रह-‘मैं कितने जीवन जिया’ से ली गई हैं। )
1
पीपल के पत्ते हरे
ललचा-ललचाकर तकें
पनहारिन जब जल भरे ।
2
पनहारिन की साधना
पानी लाना है उसे
सहकर भी हर यातना ।
3
गगरी ले मीलों चले
कभी न पनहारिन थके
पनघट उसका पथ तके ।
4
पनघट के सिल पर जहाँ
पनहारिन के पग पड़ें
पीपल के पत्ते झड़ें
5
लौट चली वह गाँव को
रोक सकी दूरी कहाँ
पनहारिन के पाँव को ।
-0-
बहुत सुन्दर त्रिवेणियाँ....
ReplyDeleteलाजवाब
सादर
अनु
पनहारिन पर सुंदर त्रिवेणियाँ ...बहुत खूब
ReplyDeleteबहुत ख़ूब!
ReplyDeleteआपकी यह ख़ूबसूरत प्रविष्टि कल दिनांक 30-07-2012 को सोमवारीय चर्चामंच-956 पर लिंक की जा रही है। सादर सूचनार्थ
वाह ... बहुत ही बढिया ।
ReplyDeleteपीपल के पत्ते हरे
ReplyDeleteललचा-ललचाकर तकें
पनहारिन जब जल भरे ।
Sabhi trveniyan badh kar main dang rah gayi svaaji ke baare men suna to bahut hai par padhne ko pahli baar mila itna dub gayi ki book padhne ki tamnna jaag uthi...achchha kiya aapne jo ye avsar hamen diya bahut2 aabhaar...agar svami ji ne gazal bhi likhi hain to mujhe afsos hoga ki maine apne PhD ke doraan unko kyon nahi padha? :(