रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
‘हाइगा’ जापानी पेण्टिंग की एक शैली है,जिसका शाब्दिक अर्थ है-'चित्र-कविता' ।यह पेण्टिंग हइकु के सौन्दर्यबोध पर आधारित है।जापानियों के जन -जीवन में इसका बहुत प्रचलन है ।इसे-कलाकार पेण्टिंग, फोटोग्राफ़ और अन्य कला के साथ हाइगा को जोड़ते हैं ।प्रसिद्ध हाइकुओं को पत्थरों पर उकेरकर स्मारक बनाने की कला को कुही कहा जाता है।यह कला शताब्दियों से प्रसिद्ध है ।
हाइगा ke bare me jankar achchha laha .haiku ke sath tasvir dono ka hi rup naya lag raha hai .
ReplyDeleteकाँटे चुभे न
बदन , हिलने से
डरे हैं पात
-०-
राही को छाया
वृक्ष को दे भोजन
पत्ते का काम
-०-
bahut sunder
saader
rachana
वाह रचना जी ! आपके इस आशु कवयित्री रूप का स्वागत है ! आपने पात पर बहुत सुन्दर हाइकु रच दिए हैं । धन्यवाद !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर हाइकु और दिये गये चित्र पर तो और भी अधिक उभर कर सामने आए। तीनों हाइकु कमाल के हैं। बधाई। इस हाइगा कला को भी आपसे सीखना है, सिखाने के लिए तैयार हो जाएं भाई साहब…
ReplyDeleteयह हाइगा तो बहुत बढ़िया शैली है!
ReplyDeleteकभी समय मिला तो हम भी हाथ साफ करेंगे!
अब तक तो मुझे हाइकु के बारे में ज्ञान था पर अब हाइगा के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा! एक नयी कला के बारे में आपसे जानने को मिला उसके लिए धन्यवाद! ख़ूबसूरत पेंटिंग पर आपकी लिखी हुई हाइकु ने चार चाँद लगा दिया है! मुझे तो आपसे ये शैली सीखना ही पड़ेगा! बहुत दिलचस्प लगा!
ReplyDeleteEk nayi vidha ka gyaan karane ke liye aabhar...bahut khubsurat haiku hain bahut2 badhai..
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर और सहज। बधाई कम्बोज भाई इतनी आलीशान प्रस्तुति के लिए।
ReplyDeleteइनकी शान में कुछ हाइकू मेरी तरफ से भी इन्ही कोमल पत्तों की प्रेरणा पर,
फिर आए ये
भोजपत्र आस के
हमारे नाम।
पीत पर्ण जो
झरने दो झरझर
रोको ना आज।
ओस-सा-मन
हवा की छु्अन से
सिहरा गात।
अधर हिले
ReplyDeleteमरुभूमि मे जैसे
कमल खिले
तीनो हाइकु बहुत अच्छे।
जिस दिन आपके हाइकु पडःाती हूँ तो प्रेरणा मिलती है दोचार लिख लेती हूँ। धन्यवाद भाई साहिब।
रामेश्वर जी ,
ReplyDeleteसुंदर हाइगा ....
शब्दों के चित्रकार का एक और कमाल !
सुन्दर पात
आपके छुअन से
सुंदर और !
नर्म -नर्म से
हरीतिमा बिखेरें
ये डाल-डाल !
पात झरे तो
यूँ बिखर जाएँगें
गली गली में !
सूखे पात तो
फिर से फिर होंगे
हरे कचूर
ओ मन तेरा
मुरझा जाए कभी
देखो पात को !
हरदीप
बहन डॉ हरदीप जी टिप्पणी के ये ये मोती आप किस समन्दर से निकाल लाई हो ! गजब की चित्रात्मकता है आपके इन शब्दचित्रों में । ये उत्कृष्ट हाइकु का नमूना हैं ।
ReplyDeleteआपको कोटिश: बधाई !
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
बेहद खूबसूरत
ReplyDeleteहाइगा, हाइकू को नई दिशा प्रदान करेगा|
नव जीवन
कोमल किसलय
प्राण संचार|
हरी पात दे
प्राणवायु प्राणी को
विष वायु से|
ऋता शेखर 'मधु'
कोमल भाव युक्त हाइगा ....बहुत सुंदर...
ReplyDeleteचित्र हाइगा
ReplyDeleteशब्द से है हाइकु
पत्थर कुही|
चित्रकला और हाइकु का अद्भुत संगम|
हाइगा से ये परिचय अति सुन्दर लगा ...
ReplyDeleteऔर तीनों हाइकू सुन्दर बेमिशाल
एक मेरी तरफ से भी तडका
हरा है अभी,
चाहूँ रोकूँ समय को
पतझड़ को |
नयी विधा की जानकारी प्रदान करने के लिए धन्यवाद. इस हाइगा में चित्र और हाइकू दोनों ही बहुत सुन्दर हैं. हाइकू भी क्या गजब की विधा है " कहने को तो / चार आखर मगर / अर्थ अनंत
ReplyDeleteSunder Sangam....
ReplyDeletebhaisahab,
ReplyDeletejapani kala aur saahitya ka anutha sangam hai haaiga. bahut sudar haaiku hain. bahut kuchh sikhne ko milta hai aapki kalam aur soch se. badhai aur shubhkaamnaayen.
पात हथेली लिख दिया किसी ने प्यार का नाम्…। सहज स्नेह का सुंदर चित्रण…। क्या कहूँ … शब्द बेबस…मन है पुलकित…नमित शीश ।
ReplyDeleteBhaisahab,
ReplyDeleteAap ne ek nayi vidya se avgat karaya. Dhanyawad. Ek to sundar chitra us par itne lajawab haiku.
1-टीका क्यों माथ
ReplyDeleteहाइकु व हाइगा
सुन्दर साथ .
2- आपके शोध
जगाते हैं मन में
सौन्दर्यबोध
- अशेष कोटिश: हार्दिक शुभ्कामनाएँ
सादर रेखा रोहतगी
चित्र के साथ हाइकु और माथे पर टीका , आपने अच्छा सामंजस्य प्रस्तुत किया है ।
ReplyDeletebahut sundar...kamal ka likha hai...bahut-bahut badhayi...
ReplyDeleteप्रेयसी पाती
ReplyDeleteपा हरियाया मन
याद लुभाती।