रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
धरती तपती लोहे जैसी
गरम थपेड़े लू भी मारे।
अमलतास तुम किसके बल पर
खिल-खिल करते बाँह पसारे।
भरी दुपहरी में लटकाए।
चुप हैं राहें, सन्नाटा है
फिर भी तुम हो आस लगाए।
कठिन तपस्या करके तुमने
यह रंग धूप से पाया है।
इन गजरों को उसी धूप से
कहकर तुमने रंगवाया है।
इनके बदले में पत्ते भी
तुमने सबके सब दान किए।
किसके स्वागत में आतुर हो
तुम मिलने का अरमान लिये?
तुझे देखकर तो लगता है-
जो जितना तप जाता है।
इन सोने के झूमर जैसी
खरी चमक वही पाता है।
जीवन की कठिन दुपहरी में
तुझसे सब मुस्काना सीखें।
घूँट-घूँट पी रंग धूप का
सब कुंदन बन जाना सीखें।
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कठिन तपस्या करके तुमने
ReplyDeleteयह रंग धूप से पाया है।
इन गजरों को उसी धूप से
कहकर तुमने रंगवाया है।
बहुत सुन्दर लगी ये पंक्तियाँ! अमलतास के झूमर के चित्र के साथ साथ बेहद ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने ! आपकी लेखनी को सलाम!
तुझे देख कर तो लगता है
ReplyDeleteजो जितना तप जाता है
इन सोने की झूमर जैसी
खरी चमक वही पाता है|
jeevan ka kathor satya yahi hai.
itni sunder abhivyakti
bahut achha laga.
पीले फूलों के गजरे तुम
ReplyDeleteभरी दुपहरी में लटकाए।
चुप हैं राहें, सन्नाटा है
फिर भी तुम हो आस लगाए।
bahut khoobsoorat...meri badhayi...
बहुत सुन्दर रचना... बधाई
ReplyDeleteबहुत मोहक और सशक्त रचना. ज़िन्दगी की बहुत गहरी समझ से कैसे नाता जुड़ जाता है...
ReplyDeleteतुझे देखकर तो लगता है-
जो जितना तप जाता है।
इन सोने के झूमर जैसी
खरी चमक वही पाता है।
सच है जीवन में तपकर हीं मनुष्य भी श्रेष्ठ बन पाता है. बहुत बधाई उत्कृष्ट रचना केलिए काम्बोज भाई.
पीले फूलों के गजरे तुम
ReplyDeleteभरी दुपहरी में लटकाए।
चुप हैं राहें, सन्नाटा है
फिर भी तुम हो आस लगाए।
kitna sunder manvi karan hai amltas pr itni achchhi kavita mene nahi padh bahut abhut badhai
saader
rachana
जीवन की कठिन दुपहरी में
ReplyDeleteतुझसे सब मुस्काना सीखें।
घूँट-घूँट पी रंग धूप का
सब कुंदन बन जाना सीखें।
बहुत सुन्दर ..अमलतास से अच्छी सीख देती सुन्दर रचना
जीवन की कठिन दुपहरी में
ReplyDeleteतुझसे सब मुस्काना सीखें।
घूँट-घूँट पी रंग धूप का
सब कुंदन बन जाना सीखें।
Bahut hi Sunder....
पलाश के बाद अमलतास पर आपकी रचना बहुत अच्छी लगी। गुलमोहर पर हो तो वह भी पेश कीजिए।
ReplyDelete'अमलतास के झूमर' एक बेहद खूबसूरत दिल को छूने वाली कविता लगी। ये पंक्तियां तो स्चमुच कमाल की हैं-
ReplyDeleteतुझे देखकर तो लगता है-
जो जितना तप जाता है।
इन सोने के झूमर जैसी
खरी चमक वही पाता है।
ऐसी प्रेरक और सच्ची बात को कविता में अमलतास के बहाने आपने कितनी सहजता से कह दिया है ! बधाई !!
ये पंक्तियाँ तो बस कमाल हैं-
ReplyDeleteपीले फूलों के गजरे तुम
भरी दुपहरी में लटकाए।
चुप हैं राहें, सन्नाटा है
फिर भी तुम हो आस लगाए....
अच्छी सीख देती सच्ची बात को आपने कितनी सहजता से कह दिया है !
आस है तो जीवन है....
यूँ तो आपकी सभी रचनाएँ सुन्दर होती है उनमें सदैव ही कुछ अनूठा प्रयोग होता है लेकिन यह रचना तो आपकी श्रेष्ठतम रचनाओं की श्रेणी में रखने योग्य है
ReplyDeleteयह पंक्तियाँ तो गुलजार जी के गीतों सी लगती हैं...
पीले फूलों के गजरे तुम
भरी दुपहरी में लटकाए।
इन गजरों को उसी धूप से
कहकर तुमने रंगवाया है।
घूँट-घूँट पी रंग धूप का .....
वाह साहब, पलाश और अमलतास की तरह गुलमोहर भी लाजवाब है।
ReplyDeleteतुझे देखकर तो लगता है-
ReplyDeleteजो जितना तप जाता है।
इन सोने के झूमर जैसी
खरी चमक वही पाता है।
गहन भाव समेटे बेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
सादर,
डोरोथी.