पथ के साथी

Thursday, May 22, 2025

1465- अन्तरराष्ट्रीय चाय-दिवस 21 मई पर दो कविताएँ

1-चाय चढ़ा/ शशि पाधा

  


घटा घनेरी घिर-घिर आई

मुझे न ठंडी धूप सुहाई

नरम-गरम दोहर ओढ़ा

अरी बहुरिया! चाय चढ़ा

घिस लेना अदरक की फाँकें

दो -दो लौं- इलाची

सूँघ मसाले आ बैठेगी

मुँहबोली वह चमको चाची

पीढ़ी खटिया पास बढ़ा

सौंफ-मुलेठी चाय चढ़ा |

चाय-पकौड़ी का तू जाने

सखी-सहेली  का  है नाता

चटनी हरे पुदीने वाली

धनिया तो है सबको भाता

नकचढ़ा है देवर तेरा

गाढ़े दूध की चाय चढ़ा |

सारा दिन तू खटती फिरती

कुछ अपने मन भी की कर

सब की रीझें पूरी करती

तुझको है अब किसका डर

मन की पोथी खोल, पढ़ा

शक्कर वाली चाय चढ़ा |

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2-चाय: जीवन की  साँझ में घुलती तपिश

डॉ . पूनम चौधरी

 


चाय,

जैसे पहाड़ की ओट से

धीरे-धीरे फिसल रही धूप—

ना बहुत गर्म, ना बहुत तेज, ना धीमी,

बस मन को छू ले उतनी ही।

 

वह पहला घूँ,

सर्दियों की सुबह सी

जिसमें देह काँपती है

पर आत्मा मुस्कराती है।

तपती साँसो में कुछ अनकही-सी

पीर जो घुल रही है

मिठास में

जैसे बारिश के बाद

मिट्टी की गंध

बीते हुए प्रेम को छू जाए।

 

चाय,

बिलकुल वैसी ही है

जैसे एकांत में किसी पुराने मित्र की चुप्पी—

जो बोलती नहीं,

पर साथ निभाती है।

 

पत्तियों की भाप में

कभी पापा का सिर सहलाना छुपा होता है,

कभी माँ की पुरानी रेसिपी,

जिसमें हर उबाल

संघर्षों की लोरी-सा लगता है।

 

यह चाय ही तो है

जो काम के बोझ में तो कभी ऑफिस की भीड़ में

एक कोना बनाती है,

जहाँ हम थोड़ी देर

खुद से मिल पाते हैं,

जैसे बिखरे हुए पत्तों में

कोई रास्ता ढूँढता हुआ हवा का झोंका

एक फूल को छू जाता है।

 

प्रकृति की तरह,

यह हर रूप धरती है—

कभी मसालेदार मानसून,

कभी कड़वी सच्चाई की तरह काली,

कभी दूध-सी कोमल,

तो कभी शक्कर-सी मीठी याद।

 

कभी प्रतीक्षा की घड़ी में

घड़ी की टिक-टिक को रोकने का बहाना,

तो कभी विदाई की बेला में

थामी हुई बातों का अंतिम घूँट।

 

चाय—

ना केवल स्वाद,

बल्कि एक अनकही भाषा,

जिसमें रिश्ते फुसफुसाते हैं,

समय ठहरता है,

और जीवन

अपनी सारी थकान छोड़

एक कप में सिमट आता है।

 

यह चाय मात्र नहीं,

यह एक खूबसूरत पल है—

जिसमें हम

अपना सबसे सच्चा ‘मैं’

गर्म भाप के साथ

अंतस् से बाहर बहने देते हैं।

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1 comment:

  1. चाय पर अच्छी कविता-हार्दिक बधाई। शुभकामनाएँ। दृश्य सामने आ गया।

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