पथ के साथी

Saturday, April 29, 2023

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 सांत्वना श्रीकान्त


 1-प्रेम और नमक

 

प्रेम और नमक

रूपक  हैं

दोनों का उपयोग किया गया

 ज़रूरत के हिसाब से

स्वादानुसार

तेज नमक से छाले हुए

और कम नमक बेस्वाद लगा

जब रिश्ते में फफूँद लगने की

आशंका हुई तो

नमक बढ़ा दिया गया।

और जब तृप्ति की अनुभूति हुई

खारापन बहुत बढ़ गया है

मानकर

अवहेलित कर दिया गया..

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2-बीते हुए बसंत की याद में

 

निर्जन वन की तरह ही

मेरी पीठ पर दहकते पलाश के फूल

आती है इनसे पकी हुई फ़सल की गंध

आलिंगन की आँच बिखेरता

अस्त हो रहा सूर्य

सुहागन के आलते जैसा पावन है

तुम्हारा हर एक स्पर्श।

पलाश जो तुम्हारे चुम्बन से

होठों की गोलाई के सहारे

मेरी पीठ पर उग आया है

बड़ी ही शीघ्रता से झरेंगे इसके फूल

लेकिन अगले बसंत के इंतजार में

यह खड़ा रहेगा मौन!

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10 comments:

  1. सुंदर रचनाएं हार्दिक बधाई व शुभकामनाएं

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  2. दोनों कविताएं उम्दा।

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  3. बहुत ही बेहतरीन लिखा आपने..

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  4. उम्दा कविताएँ...हार्दिक बधाई।

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  5. बहुत सुंदर सृजन।

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  6. सुंदर रचनाएँ,बधाई सांत्वना जी!

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  7. सुंदर सृजन

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  8. सुंदर भावपूर्ण सृजन के लिए हार्दिक बधाई सांत्वना जी

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  9. बेहतरीन रचनाएँ

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