1-माँ अब कुछ कहती नहीं!
-अनिता ललित
(यह कविता मैंने तब
लिखी थी, जब माँ जीवित थीं और कई बीमारियों की तक़लीफ़ से जूझ रहीं थीं! उनकी वह
बेबसी मुझसे देखी नहीं जाती थी! उनके पास जाकर कुछ दिन रहकर, उनके साथ वक़्त
बिताकर, जो कुछ भी उनके लिए कर सकती थी, मैंने किया! सोते समय भी वह मेरा हाथ पकड़े
रहतीं थीं, किसी छोटे बच्चे की तरह –यह याद करके मेरी आँखों में आज भी आँसू आ जाते
हैं! जनवरी, सन् 2019 में वो इस दुनिया को अलविदा कह गईं! ईश्वर से प्रार्थना है,
वे जहाँ भी हों, सुक़ून से हों, सुख में हों!)
माँ अब कुछ कहती नहीं!
लगता है, वह जीती नहीं!
ख़ाली, वीराँ आँखों से
वो बस देखा करती है;
चीख़ उठे कभी –
अनायास ही –
घुटतीं हों साँसे जैसे!
या -
कचोटता हो दर्द कोई,
भीतर ही भीतर उसको -
बयाँ नहीं कर पाती जिसको!
पीड़ा अन्दर पीते-पीते,
लगता है, वो रीत गई!
थी जीवन से भरपूर कभी जो –
वो माँ! -अब कुछ कहती नहीं,
लगता है, वह जीती नहीं!
जब से होश संभाला मैंने
माँ को बस, चलते देखा है!
घर के कोने-अतरे तक को -
उसको चमकाते देखा है!
खाना-कपड़े-झाड़ू-बर्तन
उसके हाथ खिलौने थे!
सबकी चीज़ जगह पर
मिलती
माँ, पर, एक जगह न
टिकती!
वो माँ! –अब कुछ कहती
नहीं
लगता है वो जीती
नहीं!
माँ के हाथों का खाना
जिसने खाया, उसने
जाना –
वह स्वाद अनोखा,
प्यार अनूठा –
मन को करता आज भी
मीठा !
सबको करके तृप्त सदा ही
वह कुछ खाती-पीती थी!
लेकिन, कभी-कभी, थक
कर माँ -
भूखी ही सो जाती थी!
आँधी-तूफ़ाँ या बरसात
सब उससे घबराते थे!
कड़ी धूप में साया
देती -
माँ! आँचल में भर लेती
थी!
कितनी भी हो कठिन
समस्या –
माँ! सब हल कर देती
थी!
आज विवश हो उम्र के
हाथों
बीमारी, लाचारी में –
घर के सूने कमरे में,
बेतरतीब से कोने में -
निपट अकेली पड़ी हुई
माँ -
बस! रोती है, सिसकती
है!
साँसों से जैसे थक चुकी
है!
माँ अब कुछ कहती
नहीं!
लगता है, वह जीती
नहीं!
जितने मुँह में दाँत
नहीं,
उससे ज़्यादा छाले हैं
!
पेट की आग जलाती है!
जो दे दो –खा लेती
है!
खाती क्या –निगलती
है!
न खाने का स्वाद रहा,
न जीने का चाव रहा !
खाती है –तो जिंदा
है!
जिंदा है –तो खाती
है!
माँ अब कुछ कहती नहीं
!
लगता है, वह जीती
नहीं !
अब शायद –
जीने की चाहत भी
नहीं!
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अनिता ललित ,1/16 विवेक खंड ,गोमतीनगर ,लखनऊ -226010
ई मेल: anita.atgrace@gmail.com
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2-माँ
डॉ. सुरंगमा
यादव
माँ है तो घर हँसता
माँ से ही घर में व्यवस्था
उसका मृदु स्पर्श
पल में दुःख हरता
आँखों से बहता
ममता का सोता
माँ के बिन खाली-खाली
मन रह -रह रोता
माँ है तो हर नखरा
वरना कौन मन रखता !
माँ मंगल रोज मनाती
मुझे अपनी उमर लगाती
डर जाऊँ जब अंधियारे से
झट से गले लगाती
माँ के आँचल से मुँह पोंछना
अब भी बड़ा सुहाता
रोज -रोज की फरमाइश
माँ पूरा करने को तत्पर
माँ का मन ज्यों नवनीत नवल
पल में द्रवित हो जाता
माँ नहीं तो अब कोई भी
कहता न थक कर आयी हो
बालों में उंगली की थिरकन
अब दूर करेगा
कौन थकन!
आशीषों से अपने
जीवन में सुख-समृद्धि भरती
अपनी खुशियों से बेपरवाह
सबकी खुशियों में खोई रहती
अपना दुःख कहे नहीं
औरों का बिन कहे समझ लेती
'माँ' एक अक्षर का शब्द मात्र
जिसमें ब्रह्माण्ड समाया
उसकी ममता पाने को
खुद ईश जगत में आया
माँ जीवन की किलकारी
आँसू पर मुस्कान सजाती
जो माँ का मान नहीं करते
वे समझो बड़े अभागे
माँ की सेवा से विरत रहें
अपनी दुनिया में खोये हैं
कल क्या हो किसने जाना
आज दुआओं से उसकी
निज दामन भर लो!
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3-नींद की मीठी झपकी माँ
डॉ.महिमा श्रीवास्तव
पहाड़ों
से निकलते
फेनिल, खुशी के झरने
जैसी
थी मेरी माँ ।
टैगोर
की गीतांजलि-सी
काव्य
की सौगात
ही
थी मेरी माँ ।
जलतरंग
-सी बजती
चूड़ियों
से भरी गोरी कलाई
माखन
मिश्री- सी थी माँ ।
मेरी
बाट निहारने वाली
चंपा
-चमेली की
बगिया
जैसी थी मेरी माँ ।
झिरमिर
बारिश से
नम
हुई माटी की
सौंधी
खुशबू जैसी
मेरी
सखी थी माँ ।
मधुमालती
की बेल- सी
मेरे
मन के द्वार को
घेरे
रहती थी माँ ।
जाड़े
में नर्म रजाई- सी
मुझे
अपने में समेट लेती
ममता
की बाहों सी माँ ।
गोभी
गाजर के अचार के
मसालों
से सने हाथों वाली
स्वादों
का संसार थी माँ ।
सपने
में दिखने वाली
जादुई
छड़ी लिये
सोनपरी
जैसी थी माँ ।
पुस्तकों
पर थका
सिर
रखे हुए
मीठी
नींद की झपकीजैसी ही थी माँ।
-0- Email: jlnmc2017@gmail.com
8118805670
-0-
भावनाओं की गहराई से युक्त तीनों कविताएँ। बहुत बधाई आपको
ReplyDeleteअनुपम भावों का संगम ... तीनों रचनाएँ एक से बढ़कर एक ... सभी रचनाकारों को बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई।
सादर
भावपूर्ण ह्रदयस्पर्शी रचनाएं!
ReplyDeleteमाँ से ही प्यार है, संसार है! माँ! इस जीवन का सार है! _/\_
ReplyDeleteसुरंगमा जी एवं महिमा जी ...इन भावपूर्ण कविताओं के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई!
मेरी कविता को यहाँ स्थान देने हेतु आदरणीय हिमांशु भैया जी का हार्दिक आभार!
मेरा उत्साहवर्धन करने हेतु आप सभी सुधीजनों का हार्दिक धन्यवाद एवं आभार!
~सादर
अनिता ललित
अलग-अलग भावों से परिपूर्ण बहुत सुंदर कविताएँ। आप तीनों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमातृदिवस पर पावन मनभावन अभिव्यक्ति के लिए तीनों रचनाकारों को बधाई
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteइस जीवन का सार है माँ.... बहुत भावपूर्ण सुंदर कविताएँ। अनिता जी, सुरँगमा जी और महिमा जी को हार्दिक बधाई!
ReplyDeleteमाँ की महिमा पर तीनों कविताएँ बहुत भावपूर्ण । बधाई अनिता जी ,सुरंगमा जी,महिमा जी ।
ReplyDeleteसाथ ही मातु दिवस की बधाइयाँ भी स्वीकारें ।
गहन अनुभूतियों, पीड़ाओं, वेदनाओं और सुख-दुख की यादों से सराबोर सुंदर कविताओं के लिए अनीता ललित जी, सुरँगमा जी और महिमा जी को बहुत-बहुत बधाई !
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचनाएँ
ReplyDeleteअनिता जी, सुरंगमा जी एवं महिमा जी को बधाइयाँ
आभार, कम्बोज सर का।
ReplyDeleteसुरंगमा व अनीता जी को बधाई।
हर रचना अपने आप में एक अनुगूंज समेटे है ।
ReplyDeleteपहली रचना दहला गई सच माँ याद आ गई दूर है पर उम्र के इस पड़ाव में अब ऐसा न देखें ।
काश समय हमें कुछ दिन माँ के लिए माँ बनने दें।
माँ पर केंद्रित तीनों कविताएँ भावों की सघनता लिए हुए हैं। माँ पर जितना भी लिखा जाए वह कम ही है।
ReplyDeleteकविता के द्वारा माँ को याद करना ,माँ को पुकारने जैसा ही है। बधाई
माँ पर केंद्रित सभी रचनाएँ बहुत भावपूर्ण...अनिता जी, सुरंगमा जी तथा महिमा जी को बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचनाएं
ReplyDeleteअनीता जी, एक बीमार, अवश माँ की पीड़ा आँखें नम कर गई | बधाई एक अच्छी रचना के लिए |
ReplyDeleteसुरंगमा जी और महिमा जी की रचनाएँ भी दिल छू गईं, आप दोनों को भी बहुत बधाई |