1-सविता
अग्रवाल 'सवि' कैनेडा
मस्तिष्क में बल भर
विपदाओं से लड़ते
सरदी के मौसम में
निरंतर चलते
अपने अस्तित्व को सँभाले
बच्चों की परवरिश करते
अपने ध्येय पर अडिग
मीलों दूर चलते
पैसा -पैसा बचाते
और हम सब पर लुटाते
क्यों न सोचा कभी
अपने लिए तुमने
सर्दी में गर्म जूता
बनाने का
मख़मली बिस्तर और बिछौने
का
लम्बे दिनों में भी
न तुमने आराम किया
बच्चों की खुशहाली के
लिए
दिन- रात काम किया
याद है मुझे वह दिन
जब स्कूल पिकनिक के लिए
तुमसे पैसे माँगे थे
विपदाओं के लिए रखे जो
थोड़े से पैसे थे
माँ से कहकर तुमने
वही दिलवाए थे
मेरे मुख पर मुस्कराहट
देख
तुम भी मुस्कराए थे
आज पीछे मुड़कर सोचती हूँ
तो लगता है
कितने इरादे थे तुम में
सबको खुश रखने के
वादे थे तुम में
आदर्श जीवन हमको सिखा गए
पिता ! तुम संसार से विदा क्यों ले गए
?
हमारे बीच से अलग क्यों
हो गए ?
जीने के लिए हमें अकेला छोड़ गए
अकेला छोड़ गए।
2-परमजीत कौर 'रीत'
कितने भी मजबूत भले हों,नाज़ुक जाँ हो जाते हैं
माँ के बाद पिता अक्सर, बच्चों की माँ हो
जाते हैं
हर बात सोचने लगते हैं, सोते-से जगने
लगते हैं
हर आहट पर चौंके-चौंके,वो चौखट तकने लगते हैं
इस-उसके आने-जाने तक,जो फ़िक्र में ही
डूबे रहते
उस हरे शज़र के चिंता में, यूँ पात
सूखते- से लगते
सूरज बन तपने वाले फिर, शीतल छाँ हो जाते
हैं
माँ के बाद पिता अक्सर,बच्चों की माँ हो
जाते हैं
माला के मोती बँधे रहें ,खुद धागा
बनके रहते हैं
हर खींच-तान को आँखों की, कोरों से देखा
करते हैं
इक वक्त था सबकी आवाजें,नीची थी उनकी बोली
से।
इक वक्त जो उनकी वाणी में,झर-झरते हैं पीड़ाओं के।
खुद में कर-करके फेर-बदल,घर से दुकाँ हो जाते हैं
माँ के बाद पिता अक्सर ,बच्चों की माँ हो
जाते हैं
-0-
( 15 अगस्त 2018 को आकाशवाणी सूरतगढ़ के 'महिला जगत' की काव्य गोष्ठी में प्रसारित)
दोनों कविताएँ भावपूर्ण...मन को छूने वाली अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteपरमजीत जी एवं सविता जी को बधाइयाँ !!
सविता जी की कविता में पिता के व्यक्तित्व का भावपूर्ण चित्रण है,वहीं परमजीत जी का गीत पिता के स्नेह के अलग पहलू का चित्रण करता है-माँ के बाद पिता अक्सर बच्चों की माँ हो जाते हैं...दोनो ही कविताएँ संवेदना को स्पर्श करती है।दोनो को बधाई।
ReplyDeleteपिता के व्यक्तित्व का बहुत सुंदर चित्रण ।सच में पिता प्यार के सागर होते हैं ।बहुत सुंदर।बधाई सविता जी।
ReplyDeleteमाँ के बाद पिता अक्सर,बच्चों की माँ हो जाते हैं। मर्मस्पर्शी,भावपूर्ण कविता के लिए बधाई परमजीत जी।
दोनों ही कविता भावपूर्ण और सुंदर, सविता जी और रीत जी को बहुत बहुत बधाई!
ReplyDeleteबढ़िया रचनाएं, सविता जी और परमजीत कौर जी को हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteपरमजीत जी की पंक्तियाँ - माँ के बाद ,पिता का माँ हो जाना ; बहुत अच्छा है ।
ReplyDeleteबधाई ।
दोनों कविताएँ बेहद हृदयस्पर्शी एवं भावपूर्ण ।बहुत-बहुत बधाई आपको ।
ReplyDeleteअत्यंत मर्मस्पर्शी कविताएँ! दिल को छू गईं!
ReplyDeleteबहुत बधाई सविता जी एवं परमजीत जी!
~सादर
अनिता ललित
ReplyDeleteमेरी रचना को प्रकाशित करने के लिए आपका हार्दिक आभार आदरणीय काम्बोज भाईसाहब जी।
'पिता' पर भावपूर्ण सृजन के लिए, सविता अग्रवाल 'सवि'जी को हार्दिक बधाई।
सभी आदरणीय गुणीजनों की उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाओं का हार्दिक आभार।
बहुत भावपूर्ण मर्मस्पर्शी रचनाएँ....सविता जी, परमजीत जी आप दोनों को हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteमेरी कविता को यहाँ स्थान देने के लिए भाई काम्बोज जी का हार्दिक धन्यवाद |परमजीत जी की भाव पूर्ण कविता है सूरज बन तपने वाले फिर ,शीतल छाँव हो जाते हैं....बहुत बहुत बधाई |
ReplyDeleteसभी की प्रतिक्रियाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद |
ReplyDeleteबेहद मर्मस्पर्शी कविताएँ जो मन को भिगो गईं ...बहुत बधाई सविता जी एवँ परमजीत जी!
ReplyDeleteबेहतरीन सृजन !!सविता जी एवं परमजीत जी
ReplyDeleteइस बेहतरीन लिखावट के लिए हृदय से आभार Appsguruji(जाने हिंदी में ढेरो mobile apps और internet से जुडी जानकारी )
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