1-ट्यूलिप -कृष्णा वर्मा
तुम्हारे दिव्य रूप के मोहपाश में
बँधने से नहीं बच पाई मैं
ख़रीद ही लिया
दस डालर में
तुम्हें चंद रोज़ पहले
अपने कमरे की कुर्सी के ठीक सामने
खिड़की के नीचे पड़ी मेज़ पर सजा दिया
भोर की किरणें रोज़ खिड़की से उतर
तुम्हारा मुख चूम ऊर्जित करती हैं तुम्हें
तुम्हें सरसता देख हुलस उठता है मेरा मन
पल-पल नेह-भरे
जल से
सींचती है तुम्हें मेरी दृष्टि
इंतज़ार है तो केवल तुम्हारे खिलने का
अनायास एक सुबह तुम्हें विकसित हुआ देख
नाच उठा मेरा मन
तुम्हें यूँ मुसकुराता देख लगा
ज्यों हो कोई मेरा सगा सहोदर
हँसना-खिलखिलाना तो यूँ
भी आजकल
किताबी शब्द हो कर रह गए हैं
या यूँ समझो कि आदतन ही अब
आत्मलीन होने लगे हैं
सब
कितने मोहक हो तुम मेरी कल्पना से परे
चटक लाल रंग निखरा-निखरा यौवन
कोमलता ऐसी की निगाह फिसल जाए
तुम्हारा दिपदिपाता रूप देख
पगलाने लगती है मेरी ख़ुशी
और मुस्कुराहटें बैठने लगती हैं
मेरे होंठों की मुँडेर पर
बोलने लगा हैं
अनायास संवादों का मौन
तुम तो मेरी रूह की ख़ुराक बन गए हो
सच में तुम्हारी उपस्थिति ने
नया विस्तार दे डाला है मेरी सोच को
कभी-कभी इस कटु सत्य को सोच
सहसा काँपने लगता है मन कि
और क्षीण होने लगेगा तुम्हारा लावण्य
अपने ही हाथों काट डालूँगी तुम्हें तेज़ धार
कैंची से
और फेंक दूँगी इसी खिड़की से बाहर
फिर से माटी में माटी होने को ।
-0-
2-मन है तू कौन- कृष्णा वर्मा
तुझे चंट- चपल या कहूँ मौन
इतना अनगढ़ तुझे पढ़े कौन
देह भीतर तू फिर तीतर तू
तू बंजारा नहीं नियत स्थान
तू खड़ा मिले हर शहर गाँव
कितना चाहा मिल जाए पता
ना जान सकी तेरा कौन धाम
पर्वत सा खड़ा कभी हिम-सा ढला
कभी श्याम वर्ण घन -सा गरजा
कभी कोमल बूँदें बन बरसा
गति थामें कभी कभी द्रुतगामी
तेरा नाम है मन करे मनमानी
फुदके चिड़िया -सा यहाँ-वहाँ
गिलहरी -सा उछले ठाँव-ठाँव
कभी डाल-डाल कभी पात-पात
तुझे पकड़ सकूँ रही प्यासी आस
तुझे ढूँढने को मथ लिया सागर
फिर भी ना रीति इच्छा- गागर
मिला सृष्टि में ना तेरा होना
अंतस् का टोहा कोना-कोना
भीतर तू बंद फिर तू स्वच्छंद
तू उड़ा फिरे ज्यों नभ पतंग
तेरे पकड़ने को हारे मेरे यतन
जपे लाखों मंत्र किए कितने हवन
मैंने इतना ही है जाना तुझे
खड़ा मूक मौन तू कुतरे मुझे
छलिया तू कौन तुझे पढ़े कौन
तू ही बतला मन है तू कौन।
-0-
3-बँटवारा -प्रियंका गुप्ता
चलो,
बाँट लेते हैं आधा आधा
मेरे हिस्से का प्यार तुम रख लेना
तुम्हारे हिस्से का ग़म
मैं आँचल में बाँध लूँगी;
सफ़र तो लंबा होगा-
साथ चलते हुए
थक जाएँ जब कदम,
या फिर
थमने लगें जज़्बात
फिर से कर लेंगे बँटवारा-
अपने हिस्से की यादें लेकर
मैं रुक जाऊँगी,
अपने हिस्से का वक़्त लेकर
तुम आगे चल देना...।
-0-
दिव्य सौन्दर्य से भरी मोहक रचनाएँ ..बधाई आ. कृष्णा दीदी !
ReplyDeleteबहुत सुकुमार समर्पण लिए प्यारी कविता ..बधाई प्रियंका जी !!
समर्पण भरी ख़ूबसूरत रचना....प्रियंका जी बहुत बधाई।
ReplyDeleteमेरी रचनाओं को यहाँ प्रकाशित करने के लिए आदरणीय भाई काम्बोज जी का हार्दिक आभार।
ReplyDeleteकृष्णा जी की ‘ ट्यूलिप ‘और ‘मन तू है कौन’ बहुत खूबसूरत रचनायें है ।ट्यूलिप के चटख लाल रंग को देख कर तो सच में मन की खुशी पगलाने लगी है ।ट्यूलिप अनेक रंग के होते हैं सभी मोहक सौन्दर्य सम्पन्न । लाल रंग की तो बात ही अलग है ।
ReplyDeleteप्रियंका जी की ‘ बँटवारा ‘कविता कुछ कम नहीं भोले मन की सरल अभिव्यक्ति बहुत खूब लगी ।दोनों तारीफ की हकदार हैं ।दोनों को हार्दिक बधाई ।
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' १९ फरवरी २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
विशेष : आज 'सोमवार' १९ फरवरी २०१८ को 'लोकतंत्र' संवाद मंच ऐसे एक व्यक्तित्व से आपका परिचय करवाने जा रहा है। जो एक साहित्यिक पत्रिका 'साहित्य सुधा' के संपादक व स्वयं भी एक सशक्त लेखक के रूप में कई कीर्तिमान स्थापित कर चुके हैं। वर्तमान में अपनी पत्रिका 'साहित्य सुधा' के माध्यम से नवोदित लेखकों को एक उचित मंच प्रदान करने हेतु प्रतिबद्ध हैं। अतः 'लोकतंत्र' संवाद मंच आप सभी का स्वागत करता है। धन्यवाद "एकलव्य"
कृष्णा जी की 'ट्यूलिप' और 'मन तू है कौन', दोनों कविताओं में भाव-सौंदर्य के साथ-साथ काव्य-सौन्दर्य भी है. प्रियंका जी की कविता - 'बंटवारा' दिल को अन्दर तक छू गयी.' मुझे राजा मेहँदी अली खान का लिखा गीत याद आ गया - 'अगर मुझसे मुहब्बत है, मुझे सब अपने गम दे दो.'
ReplyDeleteवाह!!बहुत खूबसूरत रचनाएँ ।
ReplyDeleteवाह!!बहुत खूबसूरत रचनाएँ ।
ReplyDeleteबहुत खूब!!!
ReplyDeleteWah, Such a wonderful line, behad umda, publish your book with
ReplyDeleteOnline Book Publisher India
बेहद खूबसूरत रचनाएँ.
ReplyDeleteआ. कृष्णा जी उम्दा सृजन के लिए आत्मिक बधाई ।🙏🙏🙏🙏
ReplyDeleteविभिन्न भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति!!प्रत्येक रचना कथ्य का पूर्ण आकलन करने के साथ सहृदय के साथ सामंजस्य करती है। बधाई!!
ReplyDeleteशुक्रिया!आदरणीय रामेश्वर सर
बेहतरीन सृजन से रू ब रू करवाने के लिये!!
बहुत सुंदर रचनायें
ReplyDeleteप्रभावी प्रस्तुति
सादर
वाह! बहुत ही सुंदर कविताएँ सभी!
ReplyDeleteआ. कृष्णा दीदी, सचमुच! मन कितना भी उदास हो, खिलते फूलों को देखकर कुछ पलों के लिए हम सबकुछ भूल जाते हैं!
आपको व प्रियंका जी को ख़ूबसूरत सृजन हेतु हार्दिक बधाई!!!
~सादर
अनिता ललित
मन को सुकून देती ..बहुत ही प्रभावी रचनाएँ ...आप सभी को आप सभी रचनाकारों को बहुत-बहुत बधाई !!
ReplyDeleteआप सभी की उत्साहवर्द्धक टिप्पणियों के लिए दिल से आभार...|
ReplyDelete