इन्दु
शाम की इस ठंडी आग में
बुझते दिए को जलाए हूँ,
जब भी रोशनी खोने लगता है
उसे गरम हवा के छींटे देती हूँ;
पर शायद ये जानता है
इस ठंडी आग के साए में
इसे उम्र भर जलना है;
हर नई छींटे के साथ
फिर जल उठता है
एक नई आशा और
उमंग मन में संजोये.
तुमसे कहता है,
कोई एहसान न करना;
वरना इस ठण्डे तूफ़ान में
यह अंतिम साँस
भरेगा......
शब्दों के इन जंजालों में
गहरा भेद छिपा है
खुद ही नहीं समझ पाती
मैं क्या हूँ? क्यों हूँ? कौन
हूँ?
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परिचय-इन्दु
शिक्षा: एम. ए. समाजशास्त्र, बी.एड.
सृजन-लेख
रचना, कविता रचना
निवास-गुड़गाँव
-0-
सुन्दर रचना
ReplyDeleteसारगर्भित ,शुभकामनाएं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना इन्दु जी बधाई!
ReplyDeleteManju Mishra ji, Ramesh Gautam ji, Krishna ji
ReplyDeleteप्रोत्साहन के लिए धन्यवाद।
Bahut sarthka bahut bahut badhai...
ReplyDeleteभावना जी, दिल से आपका धन्यवाद
Deleteभावपूर्ण रचना अच्छी लगी। शुभकामनायें
ReplyDeleteआपको ये रचना अच्छी लगी इसका बहुत शुक्रिया
Deleteसच है! शब्दों के जंजालों में गहरे भेद छुपे होते हैं, जिसे कई बार बुनने वाला भी नहीं समझ पाता …
ReplyDeleteअक्सर ये सवाल मन में उठता है मैं क्या हूँ? क्यों हूँ? कौन हूँ? … और अक्सर बिना जवाब के ही मन के किसी कोने दुबक जाता है …
सुंदर रचना के लिए आपको बधाई इंदु जी !
इस परिवार में आपका स्वागत है!
~सादर
अनिता ललित
धन्यवाद अनिता जी
ReplyDeleteजिज्ञासा, कौतुहल, संशय... यही तो हैं जो कविता लिखने को बाध्य करते हैं। जीवन पहेली को समझने का प्रयास ही है ये।
आभार।
खुद में खुद को ढूँढना हमारी लेखनी ही कर सकती है | अच्छी रचना के लिए बधाई इंदु जी |
ReplyDeleteशशि पाधा
प्रोत्साहन के लिए आपका बहुत धन्यवाद, शशि जी।
Deleteप्रोत्साहन के लिए आपका बहुत धन्यवाद, शशि जी।
Deleteयह अंतिम साँस भरेगा......
ReplyDeleteशब्दों के इन जंजालों में
गहरा भेद छिपा है
खुद ही नहीं समझ पाती
मैं क्या हूँ? क्यों हूँ? कौन हूँ?
maarmik rchnaa , jivn ke rahsy se otprot yathaarth ko vyan krati hae
svaagt , badhaaiyon ke saath
जी, जीवन के रिश्ते से जुड़ी, कठिनाइयों के होते भी जीने की ललक दिखाती..... शुक्रिया मंजू जी।
Deleteइंदु जी भावपूर्ण रचना के लिए वधाई। … मैं क्या हूँ ? क्यों हूँ ? कौन हूँ ?
ReplyDeleteअगर इस का इंसान को भेद मिल जाये तो सारे बंधनों से मुक्त न हो जाये।
यह रहस्य ही तो तो सृजन की और प्रेरित करता है।
आपने सही कहा! धन्यवाद कमला जी।
Deleteजब भी रौशनी खोने लगता है उसे गर्म हवा के छींटे देती हूँ |मर्म की अभिव्यक्ति है |सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई |
ReplyDeleteआपका बहुत शुक्रिया सविता जी
Deleteआपका बहुत शुक्रिया सविता जी
Deletesundar chintan poorn abhivyakti ..haardik badhaii indu ji !
ReplyDeleteआपका बहुत धन्यवाद ज्योति जी!
Deletebadi hi khoobsurti ke saath likhi rachna ! haardik badhai indu ji !
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना है ।
ReplyDeleteखुद को लेकर ये प्रश्न शायद हर किसी के दिल में गाहे-बगाहे उठते ही रहते हैं।
बधाई...।