पथ के साथी

Sunday, September 22, 2024

1432

 

क्या मुश्किल ले जो ठान
     - सुशीला शील राणा

 


बेटों के वर्चस्व वाली दुनिया में
बेटियों का आना
कब उत्सव हुआ

न कोई थाली बजी
न बधावे के गीत गूँजे
न कोई मिठाई
खीर-लापसी
न कोई जीमना
न जिमाना

जच्चा भी
अनकिए अपराध के बोध से
कुछ सहमी- सी
स्वीकारती है हर ताना
सहती है चुपचाप
शब्दों के तीर

दुलारती है नन्ही- सी जान को
कुछ
यों
मानो जच्चा के कक्ष की दीवारों में
लगे हों आँख-कान
जो कर देंगे चुगली
बेटी को लाड़ लड़ाने के अपराध की
घर भर से

पिता भी
अपने माता-पिता
समाज की लाज-लिहाज-शर्म के
बोझ तले दबे
दबाते रहे अपनी इच्छाएँ
लाड़ो को बाँहों में झुलाने
काँधे पर
गाँव-गुआड़ में घुमाने की

खरपतवार सी
बढ़ जाती हैं बेटियाँ
बेटों को मिली
सुविधाओं से वंचित
अव्वल आती हैं बेटियाँ

कर दी जाती हैं पराई
उनके सपने
उनकी प्रगति
चढ़ जाते हैं बलि
अच्छे घर-वर की चाह में

संस्कारों के साँचों में ढली
कब कर पाती हैं विरोध
माँ-बाप के सुख पर
अपना सुख
न्यौछावर कर देती हैं बेटियाँ

बुनती हैं बया सा सुंदर घोंसला
पालती हैं नन्हीं जानों को
वृद्ध सास-ससुर को
सबको सँभालते-सँभालते
ख़ुद को खो देती हैं बेटियाँ

जितनी भी बचती हैं शेष
दोनों घरों में बँटते-बँटाते
फिर भी रहती हैं विशेष बेटियाँ

असहाय बूढ़े माँ-बाप की
हो जाती हैं लाठी
ताक पर धर देती हैं समाज
उसकी रूढ़ियाँ
माँ-बाप के लिए
ढाल हो जाती हैं बेटियाँ

बेटियों के अपराधी
समय-समाज-रूढ़ियाँ
माँग रहे हैं माफ़ी
सृष्टि की जनक
सृष्टि की पालक
सृष्टि की
संवाहक
सृष्टि का शृंगार हैं बेटियाँ

वधुओं को तरसते आँगन
नन्ही किलकारियों को
तरसते कान
कब से रहे हैं पुकार
बेटी है तो सृष्टि है
बचानी है अगर सृष्टि
तो बचा लो बेटियाँ

बचा लो बेटियाँ
कि बच पाए इंसान की ज़ात
बच पाएँ पीढ़ियाँ
आसमां में मंडराते बाज़-गिद्धों से
बचानी हैं चिरैयाँ
तो बाँध दो इनके पंजों में
वीर शिवा का वही वाघ
-नख
जो फाड़ दे वहशी की अंतड़ियाँ
बाँध दो इनके परों में
पैनी ब्लेडों की पत्तियाँ
कि उड़ा दें हर बुरी नज़र की
चिंदी-चिन्दियाँ

अब घर-घर हो शंखनाद
बजे रण की भेरी
बिटिया नहीं उपभोग
हर भक्षी के लिए
हुई बारूद की ढेरी
बेटी है रानी झाँसी
संग जिसके झलकारी
कर्णावती-दुर्गावती
क्या मुश्किल ले जो ठान
बिटिया! तू बन रज़िया सुल्तान

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23 comments:

  1. बहुत सुंदर कविता, हार्दिक शुभकामनाऍं।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय भीकम जी 🙏🏼

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  2. Rashmi Vibha Tripathi22 September, 2024 23:05

    बहुत सुंदर कविता
    हार्दिक बधाई आदरणीया 💐
    सादर

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    1. सराहना के लिए हार्दिक आभार रश्मि विभा जी 🙏🏼

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  3. बहुत सुंदर कविता...हार्दिक बधाई सुशीला जी।

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    1. हार्दिक आभार कृष्णा जी 🙏🏼

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  4. बहुत सुंदर सृजन।

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  5. बहुत सुंदर कविता, कई पहलू छूती,हार्दिक बधाई सुशीला जी।

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    1. रचना के पहलुओं ने आपके दिल को छुआ मेरा सृजन सफल हुआ। हार्दिक आभार 🙏🏼

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    2. अति सुंदर है बेटियाँ बहुत सा आभार

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  6. आज भी अधिकतर बेटियों की यही दशा हैं। पर बेटियाँ ही बदल सकती हैं बेटियों की दिशा । बहुत सुंदर कविता हार्दिक बधाई सुशीला जी।

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    1. जी आपने सही कहा स्त्री ही स्त्री की दशा बदल सकती है। हार्दिक आभार 🙏🏼

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  7. बेटियों के पूरे जीवन चक्र को सुशीला जी ने बहुत सुन्दर शब्दों में व्याख्यान कर कविता का रूप दिया है | हार्दिक बधाई | सविता अग्रवाल "सवि"

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    1. कविता को आपका स्नेह, सराहना मिली, मेरा सृजन सफल हुआ। हार्दिक आभार सविता जी 😊🙏🏼

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  8. बहुत ही सुन्दर सृजन ,
    हार्दिक बधाई आपको।

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  9. कविता की सराहना के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद सुरभि जी 🙏🏼

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  10. रोमांचित करने देने वाले शब्द और भाव,सचमुच समय की माँग यही है।हार्दिक बधाई आपको।

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    1. सच है पर अब इससे आगे बढ़ना होगा।

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    2. हार्दिक आभार 🙏🏼

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  11. बहुत सुन्दर रचना

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  12. बहुत सुंदर रचना!
    कब से पुकार जारी है, पर सुधार बहुत बाकी है...

    ~सादर
    अनिता ललित

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  13. बहुत प्यारी कविता, मेरी हार्दिक बधाई

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