कृष्णा वर्मा
1
हमसे द्वेष करने वाले
हमसे दूरी तो रखते हैं
पर अपने दोस्तों के बीच
बात हमारी ही करते हैं।
2
लाख बोले कोई
मिश्री- सी ज़ुबान
झलक ही जाती है
स्वभाव की उग्रता।
3
करें जब शब्द
लगाई बुझाई तो
शक़ की तपिश से
सूख जाते हैं
प्यार के झरने।
4
भीतर बाहर शून्य
शून्य है चारों ओर
अपने संग निपट अकेला
फिर मैं-मैं का शोर।
5
औलाद से मिली ख़ुशियों की
ज़मानत होती है
माँ-बाप के चेहरे की मुस्कान।
6
ज़ुल्म सहने और
आँसू पीने में
माहिर न होती औरत
तो
ना यह चमन होता
ना अमन
होतीं
केवल वीरानियाँ।
7
औरत के चेहरे पर
खिंची एक-एक लक़ीर
एक-एक झुर्री
साक्षी होती है
संचित अनुभवों की।
8
किसे चाहिए दोस्त आज
हँसने-हँसाने के लिए
फ़ोन ही काफ़ी है
दिल बहलाने के लिए
सब रिश्ते नाते
भुलाए बैठे हैं
अभासी दुनिया को
अपनाए बैठे हैं
अंतिम सफ़र में
चार कांधों का
जाने क्या हिसाब
लगाए बैठे हैं।
9
पीहर आकर बेटी
माँ के कांधे पर
उडेलते हुए अपने दुख
क्यों भूल जाती है
बरसों से सह-सहकर
बूढ़ी हुई माँ की
दुखों वाली गठरी
हो जाएगी और भारी
कैसे ढो पाएँगे
उसके क्षीण काँधे
दोहरे दुख।
10
शिकारियों की शौर्यगाथाओं में
लिखे जाने वाले
हिरणों का इतिहास नहीं मैं
औरत हूँ- नश्तर की नोक
योगमाया अवतार संघार
परिचित हैं मुझसे संसार
जिसके एक पग की थाप
बहुत है क्रांति के लिए
राधा मीरा सीता ही नहीं
सत्यवान की
सावित्री है औरत
सबल सरल सहज
निश्चल निर्मल
प्रेम ही प्रेम
ईश्वर की अद्भुत
सुंदरतम कृति
औरत ही है
समस्त संसार का जीवन।
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बहुत सुंदर, हार्दिक शुभकामनाऍं ।
ReplyDeleteशिकारियों की शौर्यगाथाओं में
ReplyDeleteलिखे जाने वाले
हिरणों का इतिहास नहीं मैं.....
बहुत सुंदर। हार्दिक बधाई कृष्णा वर्मा जी।
वाह! प्रत्येक क्षणिका/कविता अति सुंदर! अनेकों बधाई कृष्णा जी!
ReplyDeleteAppreciate your bloog post
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