1.ये
पता ना था
ये तो पता था कि
मौत तो इक दिन आनी है
जो उम्र लिखा है ओ जीना है
पर ये ना पता था
कि
यूँ चुपके से आ जाएगी
बिना किसी से कुछ कहे सुने
चुपके से ले जाएगी
अपनों से गले मिलने का
मौका दिए बगैर
उन्हें
बिना देखे बिना सुने
अलविदा कैसे कह दें
ये कैसी लड़ाई है
अपने आप से
जीने-मरने का,
हिसाब करने का
वक्त तो दो
ऐसे कैसे आ सकती हो
बगैर दस्तक दिए
यूँ ही चुपचाप
-0-
2.कह
दो
हवाओं से कह दो
तुम भी
बहो ज़रा सम्भलके,
इंसान की बदनियती ने
घोल दिया है ज़हर ।
तुम तो हर कण में बसे हो
भला हमें छूऐ बगैर
कैसे बहोगे ।
मेरा बस चले तो
तुम्हें भी बंद कर लूँ
अपने घर के एक कमरे में,
21 दिन बाद
खोल दूँगी खिड़की दरवाज़े,
फिर बहना पंख फैलाकर
बेख़ौफ़
जहाँ तहाँ , यहाँ वहाँ ।
-0-
3. चिरैया
इन दिनों
मेरे आँगन की चिरैया भी
चहकने से डरने लगी ।
वह आदी नहीं है
इस सन्नाटे की,
दाना डालो तो
इधर- उधर तकती हुई
चौकन्ना होकर,
एक दाना चुगती है
और फुर्र से उड़ जाती है ।
दूर किसी पेड़ की डाल पर बैठी
टटोलती है
हम इंसानों की हरकतों को,
जैसे पूछ रही हो-
क्यों छिपा लिया है चेहरा तुमने
क्या किया है कोई अपराध?
या है पकड़े जाने का डर ।
यदि जीना है बेख़ौफ़
तो आ जाओ हमारी
दुनिया में,
और उड़ जाओ
जहाँ भी मन चाहे
ना कोई रोकेगा ना कोई टोकेगा
-0-
4.आज
की सुबह
रोज़ सुबह
बगीचे में खिले
रंग- बिरंगे फूलों को देख
मन भी खिल उठता था
पर आज
फूल भी कुछ उदास थे
रंग भी उनका कुछ
मुरझाया-सा था ।
तितली और भौंरे भी
पास आने से कतरा रहे थे
हवा मद्धम मद्धम
बह तो रही है
पर जैसे
उनकी गति पर भी
कर्फ्यू का पहरा लगा हो
क्या उन्हें भी
अहसास हो गया है
इस सन्नाटे का राज़
और
थोड़ी दूरी बनाते हुए
आ गए हैं
हमारा साथ देने
लॉक डाउन
का पालन करने ।
-0-
5. तितली
एक तितली ना जाने कैसे
आज
कपड़ों के संग भीतर आ गई
मैं घबरा गई
झटका देने पर भी
नहीं उड़ी
मैंने धीरे से पकड़ा
और
एक गमले में
फूलों पर बैठा दिया
वह उड़ नहीं पाई
पर
अपने खूबसूरत
रंग- बिरंगे पंख
बंद करके खोल रही थी
मैंने प्रार्थना की उसके लिए
कहा
बीमार होने की सजा
तुम्हें नहीं मिल सकती
फूलों का रस ले
और
उड़ आसमान की खुली हवा में
घर के भीतर रहने की सज़ा तो
हम इंसानों को मिली है !
फिर
मैंने डरते हुए
बाहर झाँका
मन ही मन मनाती रही
और
मेरी मन की मुराद पूरी हुई
तितली उड़ गई थी ।
-0- udanti.com@gmail.com
सभी रचनायें एक से बढ़कर एक ... डॉ.रत्ना जी को उत्कृष्ट लेखन के लिए बहुत बहुत बधाई।
ReplyDeleteवर्तमान परिस्थिति को बेहद खूबसूरती से बयान करती रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई रत्ना जी...| बस आशा है पूरा विश्व इससे जल्दी मुक्त हो पाए...|
ReplyDeleteदुनिया के इस हालात से उपजी मनोदशा पर बहुत सुन्दर सुन्दर कविताएँ. सच है कि पशु पक्षी भी समझ नहीं पा रहे होंगे कि आखिर हुआ क्या है? मानव छुप क्यों गया है? भावपूर्ण रचनाओं के लिए बहुत बधाई रत्ना जी.
ReplyDeleteलॉक डाउन के परिप्रेक्ष्य में सुंदर रचनाएँ , पक्षी और हवाओं से बातें ।
ReplyDeleteशुभकामनाएं, बधाई ।
रमेश कुमार सोनी , बसना
सामयिक.,सटीक, सुंदर,भावपूर्ण कविताएँ। उत्कृष्ट लेखन के लिए हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteसुन्दर और सार्थक सामयिक रचनाधर्मिता के लिए बधाई
ReplyDeleteसुंदर अभिव्यक्ति रतना जी, विशेषकर तितली!!
ReplyDeleteरत्ना जी बहुत सुन्दर रचनाएं हैं |
ReplyDelete'कह दो" कविता की ये पंक्तियाँ बहुत सटीक हैं ...इंसान की बदनीयति ने घोल दिया है ज़हर ....| हार्दिक बधाई स्वीकारें |
बहुत सुन्दर और सामयिक रचनाएँ ।हार्दिक बधाई रत्ना जी।
ReplyDeleteसामयिक प्रस्तुति
ReplyDeleteसुंदर सटीक भावपूर्ण रचनाएँ... हार्दिक बधाई रतना जी।
ReplyDeleteआपाधापी के इस दौर में भी यदि कोई अपनी संवेदनाओं को सहेज सके और कागज पर उकेर भी सके तो बात अपने आप में अद्भुत हो जाती है. रत्नाजी ने बधाई की सीमा रेखा से भी ऊपर इसे एहसास के धरातल पर सफलतापूर्वक अंजाम दिया है . सो सादर साभार आपका अंतर्मन से आभार
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