डायरी क्रमांक-2 (शनिवार 27 फ़रवरी 1982 से 6 जून 1983
सोमवार) यह डायरी मिली । तो नज़र गई 16 अप्रैल 1982 को लिखे 7 हाइकु पर ,जो बाज़ार पत्रिका मासिक ( एम डी एच
ग्रुप)दिल्ली के अगस्त 1982 अंक में छपे। )
-रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1
तुम्हारी याद
बाढ़ में बहकर
हुए आबाद ।
2
झुके नयन-
झील में झिलमिल
नील गगन ।
3
मेरा विश्वास-
छला जाकर भी जो
बैठा है पास ।
4
दीप जलाए
रातें राह देखतीं
तुम न आए ।
5
फूटी रुलाई,
जैसे पुरानी बात
याद हो आई ।
6
भरा सन्नाटा
विषधर ने कैसे
आज भी काटा ।
7
भाग्य विधाता
अपना घर इन्हें
भरना आता ।
-0-
प्रणाम सरजी !
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर.. !
अरुण
बहुत सुन्दर भावपूर्ण हाइकु हैं भाई जी .....
ReplyDeleteदीप जलाए
रातें राह देखतीं
तुम न आए ।......और ....
भरा सन्नाटा
विषधर ने कैसे
आज भी काटा ।..मन को छू गए !
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
सभी हाइकु उत्कृष्ट हैं मगर ये तो तारीफ़ के भी ऊपर हैं -
ReplyDelete1
तुम्हारी याद
बाढ़ में बहकर
हुए आबाद ।
2
झुके नयन-
झील में झिलमिल
नील गगन ।
3
मेरा विश्वास-
छला जाकर भी जो
बैठा है पास ।
बधाई स्वीकारें श्रेष्ठ सृजन के लिए।
झुके नयन-
ReplyDeleteझील में झिलमिल
नील गगन ।
3
मेरा विश्वास-
छला जाकर भी जो
बैठा है पास ।
बहुत अच्छे हाइकु...सादर बधाई !!
सारे हाइकु बहुत मर्मस्पर्शी है पर यादों की बाढ़ में बह जाना फिर आबाद होना बिलकुल नवीन उद्भावना है ...
ReplyDeleteतुम्हारी याद
बाढ़ में बहकर
हुए आबाद ।
सादर |
साहित्यिक परिपक्वता में तपे सुंदर हाइकु .
ReplyDeleteबधाई .
बहुत खूबसूरत भाव पूण .
ReplyDeleteवाह! बहुत ही सुंदर!
ReplyDeleteयाद की बाढ़ में आबाद होना व छले जाने पर भी विश्वास का अडिग रहना.. दोनों तो दिल को छू गये..!
सभी हाइकु उत्कृष्ट श्रेणी के भैया जी!
बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें!
~सादर!!!
तुम्हारी याद
ReplyDeleteबाढ़ में बहकर
हुए आबाद ।
मेरा विश्वास-
छला जाकर भी जो
बैठा है पास ।
बहुत ही सुन्दर...बहुत-२ बधाई।
संक्षिप्त और प्रभावी..
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर, मर्मस्पर्शी हाइकु...बधाई और आभार...|
ReplyDeleteप्रियंका
यूँ तो सभी हाइकु उत्कृष्ट हैं, पर ये कुछ ज्यादा पसंद आए...
ReplyDeleteतुम्हारी याद
बाढ़ में बहकर
हुए आबाद ।
फूटी रुलाई,
जैसे पुरानी बात
याद हो आई ।
कितनी सरलता से मन के भाव कह गए ये हाइकु. कई दशक पूर्व लिखी गई आपकी रचना पढ़कर बहुत हर्ष हुआ, सादर धन्यवाद.
वाह!सभी बहुत ही सुंदर!
Deleteमेरा विश्वास-
छला जाकर भी जो
बैठा है पास ।.......वाह!
Dr Saraswati Mathur
बहुत ही सुन्दर और सार्थक हाइकू,आभार.
ReplyDeleteसारे हाइकु बहुत उत्कृष्ट हैं ।इतने वर्षों बाद भी ये हाइकु आज की ताज़गी बिखेर रहे हैं । सहजता से मनोभाव दिल में उतरते चले गए । इनकी तो बात ही निराली है ......
ReplyDeleteझुके नयन-
झील में झिलमिल
नील गगन ।
दीप जलाए
रातें राह देखतीं
तुम न आए ।
lajawab haikuz ..naman sir ji
ReplyDeleteतुम्हारी याद
बाढ़ में बहकर
हुए आबाद ।
मेरा विश्वास-
छला जाकर भी जो
बैठा है पास ।
4
दीप जलाए
रातें राह देखतीं
तुम न आए ।
अत्यंत भावप्रबल ...!!
ReplyDeleteमेरा विश्वास-
ReplyDeleteछला जाकर भी जो
बैठा है पास ....
sach vishwas sabse bada sathi hai .... sada saath rahta hai ...