डॉ.आदित्य शुक्ल
मैं तो बस तुमको गाता हूँ,
केवल तुम्हें रिझाने को।
लोग भले उसे मेरी कविता,
गीत, कहानी कहते हैं।
शब्द-शब्द में, छंद-छंद में,
बंध-बंध में नाम तेरा।
लोग भले ही उसको मेरी,
कृति सुहानी कहते हैं।।
नई कल्पना, नई योजना,
रूप नया, शृंगार नया।
सृजन नया, संकल्प नया,
सिद्धान्त नया, स्वीकार
नया।
रोज नए संबंध, नया-
संसार गढ़ा,तुम्हें पाने को।
लोग भले ही सुन उसको,
मुझको विज्ञानी कहते हैं ।1।
मन मुखरित हो जाता मेरा,
चिंतन में जब तुम आते हो।
मेरा योग न होता किंचित्,
जो लिखना, तुम लिख जाते हो।
हर एक स्वर में, राग-राग में,
तुम गाते हो गाने को,
लोग भले ही उसको मेरी,
मधुरिम वाणी कहते हैं ।2।
सबके आगे हाथ पसारूँ,
इतना भी अभाव नहीं है।
तुमसे परे और कुछ सोचूँ,
मेरा यह स्वभाव नहीं है।
स्वांग रचाता, मैं तेरा
हूँ,
तुमको यह बतलाने को।
लोग भले ही आपस में,
कुछ दबी जुबानी कहते हैं।3।
तुम अनंत हो, तुम असीम हो,
जाऊँ मैं तुम पर बलिहारी।
मन में भाव अथाह लिये,
मैं थाह नहीं पा सका तुम्हारी।
एक अबोध सा बोध लिये हूँ,
मन की व्यथा सुनाने को।
लोग भले ही देख उसे,
मुझे निरभिमानी कहते हैं।4।
-0-
डॉ.आदित्य
शुक्ल- (बैंगलोर 094482 06113)
डा. शुक्ल जी की रचना हृदय के भावों की पूंजी है | सरल शब्दों से गागर में सागर भर दिया है | इतनी नम्र भावना को देखकर बहुत कुछ सीखने को मिल गया | आपकी रचना बहुत ही सुंदर है | भगवान आपको इसी प्रकार लिखने की प्रेरणा देता रहे |श्याम हिन्दी चेतना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteतुम अनंत हो, तुम असीम हो,
ReplyDeleteजाऊँ मैं तुम पर बलिहारी।
मन में भाव अथाह लिये,
मैं थाह नहीं पा सका तुम्हारी।
एक अबोध सा बोध लिये हूँ,
मन की व्यथा सुनाने को।
लोग भले ही देख उसे,
मुझे निरभिमानी कहते हैं/////
वाह वाह👌👌👌 आदित्य जी, अनुरागी मन का प्रीत राग 👌👌👌
पढ़कर सुबह सुहानी हो गयी! हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई🙏🙏 💐💐
इस मनभावन प्रतिक्रिया के लिए सादर आभार रेणु जी।
Deleteसुंदरतम कविता
ReplyDeleteहार्दिक धन्यवाद महिमा जी।
Deleteवाह आदित्य जी एक एक शब्द में कितने भाव छिपे हैं सरल शब्दों में मन की बात को कविता के रूप में प्रस्तुत किया है बधाई स्वीकारें।
ReplyDeleteइस प्रतिक्रिया एवं प्रोत्साहन से अभिभूत हूँ। हार्दिक आभार सविता जी।
Deleteशानदार🌻👌
ReplyDeleteसादर आभार शिवम जी।
Deleteकितनी ही सहजता से बड़ी गहराई लिए आपने ये कविता रची है उतनी ही गहरी आपकी दृष्टि है- बधाई।
ReplyDeleteइसका रहस्य कविता के भाव में ही निहित है रमेश जी। सादर धन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर रचना!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर भावों से सजी रचना।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई स्वीकारें।
सहज साहित्य परिवार में आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीय।
सादर-
रश्मि विभा त्रिपाठी 'रिशू'
सादर आभार आपका रश्मि जी।
Deleteहार्दिक आभार आपका प्रीति जी।
ReplyDeleteगागर में सागर सी काव्यमयी मीठी कविता । बधाई ।
ReplyDeleteप्रेम में भीगी प्यारी, भावपूर्ण सुंदर कविता...
ReplyDeleteआदित्य जी हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें
बहुत ख़ूबसूरत गहन अभिव्यक्ति...हार्दिक बधाई आदित्य जी।
ReplyDeleteसरल शब्दों में मन के गहन भावों की बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति। हार्दिक बधाई आपको।
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...हार्दिक बधाई आपको आदित्य जी।
सुन्दर रचना के लिए मेरी बधाई |
ReplyDelete