पथ के साथी

Thursday, March 26, 2020

963-आदमी लापता


1-तेवरी*(विमोहा -( राजभा राजभा)
रमेशराज

ज़िन्दगी लापता
रोशनी लापता।

फूल जैसी दिखे
वो खुशी लापता।

होंठ नाशाद हैं
बाँसुरी लापता।

लोग हैवान-से
आदमी लापता।

प्यार की मानिए
है नदी लापता।
-0-
2-आजकल-डॉ.पूर्वा शर्मा
1 
कुछ दिनों से हवाओं का रुख बदला है
खुश है परिंदे कि पूरा आसमाँ सिर्फ उन्हें मिला है ।
2  
आजकल सहर में इक नशा-सा है 
गुम हुआ शोर,
पंछियों की चहचहाट से मौसम खुशनुमा-सा है ।
3  
घरों में बंद सभी इंसान 
दूर हुए काले धुएँ के निशान
आसमाँ के चेहरे पर खिली मुस्कान ।
4  
एक नन्हे- से प्राणी ने छेड़ी ऐसी  विध्वंसक तान
मनुष्य सहमा, थमा फिर उसने गाया एकांत गान 
तुच्छ प्राणी ने धरा से चाँद तक अपना हक़ जताया
उसके अहंकार को देख प्रकृति ने उसे घर पर बैठाया ।
6
दूसरों से बातें तो हमेशा ही करते आया
बड़े अरसे बाद अपनों से बतियाने का अवसर पाया ।
7
थोड़ा परेशान और मुश्किलों से घिरा हूँ
बड़े दिनों बाद थोड़ा ठहरा हूँ
इसलिए कल का सूरज देखने को जिंदा हूँ

-0-
 3-मुश्किल बड़ी घड़ी है - डॉ.सुरंगमा यादव 


मुश्किल बड़ी घड़ी है 
संयम बनाए रखना 
एक फ़ासला बनाकर 
खुद को बचाए रखना 

है जिन्दगी नियामत 
असमय ये खो ना जाए
इस देश पर कोरोना
हावी ना होने पाए
ये वक्त कह रहा है 
घर से नहीं निकलना 

कुछ देर योग करके 
निज शक्ति को बढ़ाना 
संकल्प से ही अपने 
इस रोग को भगाना
हाथों को अपने साथी 
कई बार धोते रहना 

उनको नमन करें हम 
सेवा में जो लगे हैं 
सब कुछ भुलाके अपना 
दिन-रात जो जुटे हैं 
रहकर सजग हमेशा 
अफ़वाहों से भी बचना 

मुश्किल आज घड़ी है 
संयम बनाए रखना 
-0- असि. प्रो.महामाया राजकीय महाविद्यालय महोना लखनऊ
-0-
4- माना खता हुईं -प्रीति अग्रवाल 'अनुजा'

माना ख़ता हुईं, हमसे भी कईं
ख़ुद को न किया माफ़, सबसे बड़ी यही!

अपना ये हाल तो होना ही था,
ग़ैरों के हाल जो छोड़ दिया!!

आज़मा न इतना, मुझे ए दोस्त
कि ऐतबार से ऐतबार ही उठ जाए!

लौट आते हैं  गूँजके, ये जो तंज़ तेरे
कहीं इर्द गिर्द दीवारों का असर तो नहीं?

जो मिलने का बहाने ढूँढते थे कभी
'फिर मिलेंगें' कहकर न लौटे कभी।

सादगी की सुगंध का क्या कहिए!
ये इत्र अब सरेआम नहीं मिलता।

बहुत थोड़े में खुश हो जाती हूँ मैं
शायद इसलिए मुझे थोड़ा ही मिला!

दर-ब-दर भटका किए, दोस्तों की तलाश में,
खामोशियों से करें बातें, कभी सोचा ही नहीं!
-0-

7 comments:

  1. चारों रचनाएँ बहुत सुन्दर और प्रभावशाली. रमेश जी की रचना के शीर्षक के नीचे जो लिखा है - तेवरी*(विमोहा -( राजभा राजभा), यह समझ नहीं आया. भैया, कृपया इसे समझाएँ.

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  2. मेरी पंक्तियों को स्थान देने के लिए आदरणीय सम्पादक द्वेय का आभार!
    रमेशराज जी,पूर्वा जी,सुरँगमा जी,सुंदर रचना हेतु आप सभी को बधाई....वाकई कुछ दिनों से परिंदे खुश नज़र आ रहें हैं!

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  3. रमेश राज जी, पूर्वा जी, सुरंगमा जी, प्रीति जी आप सब को उम्दा रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई।

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  4. सभी की रचनाएं मन के भिन्न भिन्न भावों को दर्शा रही हैं |सभी को बधाई |

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  5. सभी रचनाएँ बढ़िया हैं। रमेश राज जी,पूर्वा जी,सुरंगमा जी, प्रीति जी....आप सभी को हार्दिक बधाई !

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  6. सचमुच! प्रकृति आजकल मुस्कुराने लगी है, चिड़ियाएँ चहचहाने लगी हैं!
    सभी रचनाएँ बहुत सुंदर!
    रमेश राज जी, पूर्वा जी, सुरंगमा जी, प्रीति जी... बहुत बधाई आप सभी को!

    ~सादर
    अनिता ललित

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