1-डॉ.पूर्णिमा
राय
1-प्रीत
स्नेह प्रीत की डोर से,मिल जाये मनमीत।
जीवन में मिले आसरा,जग भी लेता जीत।।
स्वार्थ भरी जग की डगर,रिश्तेनाते झूठ,
नाम खुमारी नानका,सच्ची तेरी प्रीत।।
2-बेटी
खूबसूरत जिन्दगी का ,आगाज़ है बेटी।
विकट क्षणों में सुखदायी, सुरसाज है बेटी।
हो गए नशे
के शिकार ,अब जगत में बेटे;
बनी पिता के सपनों की, परवाज़ है बेटी।।
3- प्यार
ज़िन्दगी सँवार दो।
एक नज़र निहार लो।।
हो चुकी लुका-छिपी
प्यार से ही प्यार हो।।
4- तमाशा
अजब तमाशा हुआ सड़क पर।
रोता अब क्यों होकर बेघर।।
दौलत की खींचा तानी में,
गिरा जोर से मनुज फिसल कर।।
5-
लकड़ी की काठी
और
बूढ़े की लाठी
दोनों ही
देती हैं आश्रय!!
फर्क बस इतना
एक
ऊपर बिठाती है
दूसरी
गिरने से बचाती है!!
-0-
-डॉ.पूर्णिमा राय,अमृतसर(पंजाब)
-0-
2- नीतू सिंह
राय
1-अमीर और गरीब
हर अमीर समझता है
कि गरीबी क्या बला है
उसे भली भाँति पता है
और यह उसका भरम
टूटने से भी नहीं टूटा है।
अमीर को यह गुमान है
कि गरीबी का उसे शत प्रतिशत ज्ञान है
यह सारी योजनाएं जो लागू हो रही रोज-रोज
उससे ही तो होता गरीबो का उत्थान है।
सिर्फ अमीर ही तो अपनी भागीदारी निभा रहा
है
क्योकि कर तो सिर्फ वही चुका रहा है
गरीब तो बिना कर चुकाए ही
सारी सुविधाओं का हकदार है।
और भला क्या होती है जरूरते
और किन जरूरतों का गरीब को दरकार है
समझ में ही नहीं आता किसी अमीर को
कि आखिर गरीब अपनी किस जरूरत के लिए लाचार है।
आसमाँ
और समंदर सी है
अमीर और गरीब के बीच की तन्हाई
कभी आकाश सी ऊँचाई है
तो कभी पाताल सी गहराई
आखिर अंदाजा लगाये कोई कैसे
बीच में पड़ी है एक गहरी खाई।
-0-
2- आभा
तुम्हें जब पता है
कि तुम बन सकते हो
सूरज
फिर तुम तारा बनने को
क्यों बेताब हो?
क्यों घबराते हो
ज़माने के अँधियारे से
जब लिये फिरते तुम
रोशनी का सामान हो।
मुश्किलें तो आती ही
है
सबकी राहों में
सोचकर आगाज़ तुम
क्यों इतना हैरान हो?
आगे बढ़ो बस अपनी राह
पर
हो सवार उजाले की
असंख्य किरणों पर
चलते चलो बस
अपनी मंजिल की राह पर।
तेरी चमक जो है
सूरज की चंचल किरणों -सी
भला तारे में कहाँ समा पाएगी?
तेरे नूर की उज्ज्वल
आभा से
सूरज की ही लालिमा
साथ निभा पाएगी।
तुम्हें जब पता है
कि तुम बन सकते हो आफ़ताब
तो फिर तुम एक
चिंगारी बनने को
क्यों बेजार हो?
बनना है तो बनो
एक ऐसी रौशनी
जिसके साये तले
हर जर्रा गुलज़ार हो।
डॉ० पूर्णिमा की ने भिन्न-भिन्न भावों को बखूबी भिन्न छंदों में बाँधा है।
ReplyDeleteप्रभावशाली रचनाएँ। बधाई
नीतू जी को भी सुंदर, सकारात्मक रचना के लिए बधाई !
आभार सुनीता जी
Deleteआभार सुनीता जी
Deleteनीतू जी,यथार्थ पर कड़ा प्रहार करते हुये मानव जीवन का गहन रहस्य बताती बेहतरीन रचनाएं
ReplyDeleteआभार पूर्णिमा जी
Deleteसुंदर रचनाएँ !
ReplyDeleteपूर्णिमा जी एवं नीतू जी को बहुत बधाई !!
बहुत सार्थक सृजन पूर्णिमा जी व नीतू जी । स्नेह लें
ReplyDeleteविभा रश्मि
लकड़ी की काठी
ReplyDeleteअमीर और गरीब
यथार्थ का चित्रण करती सार्थक रचनाओं के लिए हार्दिक बधाई !!
आभार रेखा जी
Deleteबहुत ही सुंदर रचनाओं के लिए बधाई पूर्णिमा जी
ReplyDeleteनीतू सिंह जी आपने बहुत ही सकारात्मक और बेहतरीन सृजन किया है हार्दिक बधाई
ReplyDeleteनीतू सिंह जी आपने बहुत ही सकारात्मक और बेहतरीन सृजन किया है हार्दिक बधाई
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर रचनाओं के लिए बधाई पूर्णिमा जी
ReplyDeleteबहुत सुंदर सार्थक मनभावन रचनाएँ ..आप सबको हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteपूर्णिमा जी ,नीतू जी बहुत ही सुन्दर रचनाओं के लिए आप दोनों को हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteपूर्णिमा जी लकड़ी की काठी और.....कविता में दोनों का अंतर बताते हुए अपने-अपने स्थान पर उनके महत्व को आपने बहुत खूबसूरती से व्यक्त किया है बधाई,नीतू जी को भी सुंदर रचना हेतु बधाई |
ReplyDeleteपुष्पा मेहरा
आभार आ.पुष्पा जी!!
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ReplyDeleteरचनाकार - द्वय को हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाई।
ReplyDeleteप्रभावशाली रचनाएँ !
ReplyDeleteपूर्णिमा जी एवं नीतू जी को बहुत -बहुत बधाई !!
पूर्णिमा जी बहुत सुन्दर लगी अलग अलग भावों की छंदबंधी रचनायें ।लाठी और काठी वाली रचना के आश्रय देने की समानता का चित्र बहुत बढिया लगा । आज जगत जान गया है बेटी के महत्व को । बहुत ठीक कहा पिता के सपनों की परवाज है बेटी । नीतू सिंह राय जी आप की दोनों रचनायें भी प्रभावशाली हैं अमीर गरीब की तुलना की सही तस्वीर खींची है है । बहुत बहुत बधाई दोनों को ।
ReplyDeleteसुन्दर और भावप्रवण रचनाओं के लिए मेरी बहुत बधाई...|
ReplyDeleteसुंदर भावपूर्ण रचनाएं।
ReplyDeleteपूर्णिमा जी, नीतू जी बधाई।