रामेश्वर
काम्बोज ‘हिमांशु’
1
दाएँ न बाएँ
खड़े हैं अजगर
किधर जाएँ ।
2
मौत है आई
जीना सिखलाने को
देंगे बधाई ।
3
मैं नहीं हारा
है साथ न सूरज
चाँद न तारा ।
4
साँझ की बेला
पंछी ॠचा सुनाते
मैं हूँ अकेला ।
5
सर्दी की धूप
उतरी आँगन में
ले शिशु रूप
6
खुशबू- भरी
हर पगडण्डी –सी
नन्हीं दुनिया
7-
अँजुरी भर
आशीष तुम्हें दे दूँ
आज के दिन ।
8
फैली चाँदनी
धरा से नभ तक
जैसे चादर ।
9-
काँपती देह
अभिशाप बुढापा
टूटता नेह ।
10
जनता भेड़ें
जननेता –भेड़िए
ख़ड़े बाट में ।
11
काला कम्बल
ओढ़ नाचती देखो
पागल कुर्सी ।
12
बरस बीते
आँसुओं के गागर
कभी न रीते ।
13
बसंत आया
धरा का रोम-रोम
जैसे मुस्काया ।
14
चुप बाँसुरी
स्वर संज्ञाहीन –से
गीत आसुरी ।
15
व्याकुल गाँव
व्याकुल होरी के हैं
घायल पाँव ।
16
कर्ज़ का भार
उजड़े हुए खेत
सेठ की मार ।
17
बेटी मुस्काई
बहू बन पहुँची
लाश ही पाई ।
-०-
hindi haiku ki khoj mein aapke duaar pahuncha , bahut achhey lagey aap ke haiku ,
ReplyDeleteAchchhe haiku milte hain aapke blog par. Haiku seekhne walon ko aapka blog zaroor dekhna aur padhna chahiye.
ReplyDeleteKunwar Kusumesh
Blog:kunwarkusumesh.blogspot.com
Mob:09415518546
इतने वर्ष पहले लिखे ये हाइकु लगता है जैसे आपने अभी कल ही लिखे हैं। सच कहा जाए तो एक अच्छी रचना वर्षों तक अपनी सार्थकता बनाये रखती है। बहुत - बहुत बधाई !
ReplyDeleteसाँझ की बेला
ReplyDeleteपंछी ॠचा सुनाते
मैं हूँ अकेला ।---वाह अद्भुत और यह ----
सर्दी की धूप
उतरी आँगन में
ले शिशु रूप.----कमाल का सृजन बधाई रामेश्वर जी .मंजुल भटनागर .
एक से बढ़कर एक अर्थपूर्ण हाइकु
ReplyDeleteबहुत खुबसुरत ........सादर नमस्ते भैया
ReplyDeleteइतने सुन्दर हाइकु...सच्ची...आनंद आ गया...| हार्दिक बधाई और आभार, एक बार फिर इसे सांझा करने के लिए...|
ReplyDeleteवाह! भैया जी ! कितने भावपूर्ण हाइकु हैं! बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
सभी हाइकु बहुत सुन्दर हैं. आपका लेखन सदैव प्रभावशाली होता है. ये सभी हाइकु 7 साल पुराने हैं लेकिन बिलकुल नए से लगते हैं. बहुत शुभकामनाएँ!
ReplyDeleteहाइकु से आपका रिश्ता बहुत गहरा है जिसका अनुभव शायद देर बाद हुआ। आपने अपने ब्लॉग की नींव हाइकु से रखी और फिर इस विधा को दिल में ही कहीं छुपा रखा। जिसका कारण शायद लोगों को इस विधा की अधिक जानकारी न होना रहा होगा। आज आपने इस विधा को इतना बढ़ावा दिया है कि सभी आपकी कलम को सलाम करते हैं। रब करे ये कलम इस विधा को यूँ ही आगे बढ़ाती रहे।
ReplyDeleteहरदीप
बहन! आपकी यह टिप्पणी मेरे लिए सबसे बड़ी भेंट है; लेकिन इसके साथ सबसे बड़े तीन सच हैं, जिनमे हिन्दी हाइकु से जुड़ना , मार्च 2007 में भावना जी से अल्प परिचय , 2008 में उनका तारों की चूनर की प्रति मिलने पर और प्रगाढ़ हुआ । अगस्त 2010 में हिन्दी हाइकु के कारण आपसे परिचय और 2011 में सुधा जी से भेंट । यह सबसे बड़ा सच है कि हिन्दी हाइकु के बिना इस विधा को वह गति नहीं मिल सकती थी, जो आज मिली है । हम तीनों एक पारिवारिक रूप में जुड़े, यह हाइकु के हित में रहा। इस बहाने आपक तीनों को मेरा हार्दिक नमन!
Deleteमैं नहीं हारा
ReplyDeleteहै साथ न सूरज
चाँद न तारा ।
इस जिजीविषा को नमन भैया।
व्याकुल गाँव
व्याकुल होरी के हैं
घायल पाँव ।
बेटी मुस्काई
बहू बन पहुँची
लाश ही पाई ।
इस संवेदना को नमन। सभी हाइकु उत्कृष्ट । आप हम सभी की प्रेरणा हैं। आपके सृजन के लिए दिल से दाद और शुभकामनाएँ !
bhaisab aapki har vidha lubhati hai ...khoobsurat tatha prabhaavshaali haiku ...sadar naman hai aapke bhaavo ko..aap se hamesha hi prerna milti.hai..isi tarah milti rahe.....aabhaar aapka har khoobsurat vidha ke liye.angin pranaam ke saath-
ReplyDeleteदाएँ न बाएँ
ReplyDeleteखड़े हैं अजगर
किधर जाएँ ।
कर्ज़ का भार
उजड़े हुए खेत
सेठ की मार ।
यह है हाइकु लेखन । लय, अभिव्यक्ति, संदेश सकारात्मकता और जीवन अनुभव । वाह भाई साहब आप के लेखन का नमन । आप को हार्दिक बधाई।
एक से बढ़ कर एक सुंदर भावपूर्ण हाइकु। हार्दिक बधाई भाईसाहब।
ReplyDeleteप्रथम अंक की खुशबू फिर एक बार सबको महका गई । सांझा करने के लिए बधाई ।
ReplyDeleteVo salon purana vakt yad aa gaya jagaha bhi badli desh bhi badla par ham sab ka saath or haiku lekhn nahi badla balki jor shor se aage badha or nirantar aage badhta rahega bahut bahut shubhkamnayen.
ReplyDeleteबहुत ही अच्छे हाइकु ।
ReplyDeleteसभी एक से बढ़ कर एक ।पहले अंक से जोड़ने के लिये हार्दिक धन्यवाद ।
कई वर्ष बाद भी यह अंक ताज़गी दे रहा है - जैसे किताब में सुरक्षित कोई गुलाब का फूल |
ReplyDeleteवाह! मधुर यादें! भैया जी, आपकी मेहनत का फल सामने है! आज हाइकु हर ओर अपनी पहचान बना रहा है! ढेर सारी बधाई आपको तथा इससे जुड़े हर व्यक्ति को! यूँ ही मिलजुलकर हम सब आगे बढ़ते रहें, यही ईश्वर से प्रार्थना है!
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनाओं सहित
~सादर
अनिता ललित
सभी हाइकु एक से बढ़कर एक !
ReplyDelete'मैं नहीं हारा' और 'काला कम्बल' बहुत बढ़िया लगे , हार्दिक बधाई !
हार्दिक बधाई सर!!
ReplyDeleteसभी हाइकु बहुत ही सुन्दर .... हमारा सौभाग्य है कि इनमें से कुछ हाइकु हमारी thesis की शोभा बढ़ा रहे हैं |
ReplyDeleteपूर्वा शर्मा
सभी हाइकु बहुत ही सुन्दर .... हमारा सौभाग्य है कि इनमें से कुछ हाइकु हमारी thesis की शोभा बढ़ा रहे हैं |
ReplyDeleteपूर्वा शर्मा
बहुत ही भावपूर्ण एक स बढ़ कर एक हाइकु
ReplyDeleteहार्दिक बधाई .
बहुत ही भावपूर्ण , एक से बढ़कर एक हाइकु।
ReplyDeleteहार्दिक बधाई
वाह ! एक बार फिर मधुर यादों से रूबरू होना...इन सभी हाइकु को दुबारा पढ़ पाना...| आनंद आ गया |
ReplyDeletejaba me haiku lekhaneka try karata hu to aka bara uparaka haiku jarura dekhata huu..ye aka pratimana hai mere liyaa...Kabibara apako naman...apase milaneki chaha haii..i am from Nepal abhi Malaysia me huu..OM
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