पथ के साथी

Tuesday, January 30, 2018

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5 comments:

  1. सुधा जी का अनुभव भटके मन को राह दिखाने में पूरी तरह सशक्त है ।हरजीवन में ऐसे पल आ ही जाते हैं जब वह जीने की इच्छा का परित्यग करके मृत्यु को गले लगाना चाहता हैं ।वहीं उसके मन में कोई एक पंक्ति ज्ञान की ज्योत जगा कर उसे भटकन के तम से बाहर ले आती है । गुरू का कथन बड़ों के अनुभव तब काम आते है ।
    कबीर जी जगत को गहराई से समझ कर औरों के लिये यह सीख छोड़ गये - जो करणगे सोई भरणगे तुम क्यों भये उदास ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरूवार (01-02-2018) को "बदल गये हैं ढंग" (चर्चा अंक-2866) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बीरा तेरी झोंपड़ी गल कटियन के पास !
    जो करेंगे, सो भरेंगे, तू क्यों भयो उदास !!
    बहुत अच्छी -अच्छी सीख दी है संत कबीर ने, उन्हें पढ़कर आत्मशांति मिलना लाजमी है
    बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  4. जीवन के कटु सत्य और उनमें दृढ़ता से टिके रहने का मन्त्र दे गया आ.सुधा दीदी का यह अनुभव !
    सादर नमन वंदन आदरणीया दीदी को !!

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  5. शानदार...| परिस्थितियाँ तो ऐसी नहीं, पर मनस्थिति शायद बहुत बार हम में से कईयों की ऐसी ही हो जाती है...| ऐसे में कभी किसी पुस्तक की कोई पंक्ति या पैराग्राफ...किसी और के सांत्वना से भरे दो बोल...यानि कुछ भी ऐसा जो हमें निराशा और अवसाद की गर्त से बाहर निकाल कर एक नई राह दिखा दे, हमारे अन्दर जीने और हरेक परिस्थिति का सामना करने का हौसला जगा दे, तो उसे बाकियों के साथ ज़रूर बाँटना चाहिए...| कौन जाने कब हमारे जीवन का एक नन्हा दिया किसी और की ज़िन्दगी का सूरज बन जाए...|
    आदरणीया सुधा जी को नमन जो उन्होंने इसे हम सबके साथ सांझा किया |

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