दोहावली
1-मंजूषा
मन
1
जीवन- विष का है असर, नीले सारे अंग।
जिन जिनको अपना कहा, निकले सभी भुजंग।
जिन जिनको अपना कहा, निकले सभी भुजंग।
2
हमने तो बिन स्वार्थ के, किये सभी के काम।
हाथ मगर आया यही, मुफ़्त हुए बदनाम।।
हाथ मगर आया यही, मुफ़्त हुए बदनाम।।
3
सब अपने दुख से दुखी, कौन बँधाए धीर।
अपने -अपने दर्द हैं, अपनी अपनी पीर।
अपने -अपने दर्द हैं, अपनी अपनी पीर।
4
थाम लिया पतवार खुद, चले सिंधु के
पार।
मन में इक विश्वास ले, पार किया मझधार।।
मन में इक विश्वास ले, पार किया मझधार।।
5
कहाँ छुपाकर हम रखें, तेरी ये तस्वीर।
भीग न जाए ये कहीं, आँखों में है
नीर।।
6
मन भीतर रखते छुपा, है वो इक
तस्वीर।
बस ये ही तस्वीर है, जीने की तदबीर।
-0-
2-राजपाल गुलियाराजपाल गुलिया |
हिम्मत जुटा वज़ीर ने , खरी कही जब बात ।
राजा की शमशीर ने , बतला दी औकात ।
2.
जिनके पुरखे राज के , थे हुक्का बरदार ।
आज वही चौपाल पर , कर बैठे अधिकार ।
3.
झूठ सदा किसका चला , बता मुझे सरकार ।
चढ़ती हाँडी काठ की , कहाँ दूसरी बार ।
4.
दर पर जब ललकारता , संयम तोड़ हुदूद ।
धीरज अरु संकोच का , करता खत्म वजूद ।
5.
इस बँगले को देखकर , मत हो तू हैरान ।
इसकी खातिर खेत ने , खो दी है पहचान ।
6.
बड़े निशानेबाज हो , करो नहीं ये चूक ।
रख कंधे पर गैर के , चला रहे बंदूक ।
-0-
संपर्क सूत्र :- राजकीय प्राथमिक पाठशाला भटेड़ा , त. व जिला - झज्जर ( हरियाणा )-124108, मोबाइल #9416272973
RAJPAL GULIA <rajpalgulia1964@gmail.com>
-0-
3-ऋता शेखर 'मधु'
1
शेर, शिखी शतदल सभी, भारत की पहचान
प्राणों से प्यारा हमें,जन गन मन का गान।
2
लेखन में लेकर चलें, सूरज जैसा ओज
शीतल मन की चाँदनी, पूर्ण करे हर
खोज
3
दुग्ध दन्त की ओट से, आई है मुस्कान
प्राची ने झट रच दिया, लाली भरा विहान
4
हरी दूब की ओस पर, बिछा स्वर्ण कालीन
कोमल तलवों ने
छुआ, नयन
हुए शालीन
5
सूर्य कभी न चाँद बना, चाँद न बनता
सूर्य
निज गुण के सब हैं धनी, बंसी हो या
तूर्य
6
सुबह धूप सहला गई, चुप से मेरे बाल
जाने क्यों ऐसा लगा, माँ ने पूछा हाल
-0-
4-कृष्णा वर्मा, कैनेडा
1
संस्कार जब से
मिटे ,मरा आपसी प्यार
निज आँगन हिस्से
किए नफ़रत का व्यापार।
2
किसको अपराधी
कहें , कौन करे नुकसान
आख़िर में
माता-पिता ,करें सदा भुगतान।
3
धन-दौलत किस काम
का, मारे जो मिठ बोल
बिना तेल बाती
बिना ,क्या दीप का मोल।
4
बेटी बिन सूना
लगे ,विरस तीज-त्योहार
सूना रहता आँगना ,नहीं प्यार मनुहार।
-0-
5-सविता अग्रवाल ‘सवि’,कैनेडा
1.
माँ की ममता का नहीं, जग में कोई तोल
बेटी बेटे लड़ रहे, लगा सके ना मोल ।
2
जमा जमा कर धन भरा, सुख पाया ना कोय
माया तो ठगनी
भई, समझ
देर से होय ।
3
बार -बार तट छू रही, लहर ना माने हार
सदियों से है बढ़ रहा, तट लहरों में
प्यार ।
4
बाती बटकर प्रेम की, भरो नेह का तेल
दीप जलाकर देख तू, सबसे होगा मेल ।
-0-
जीवन- विष का है असर, नीले सारे अंग।
ReplyDeleteजिन जिनको अपना कहा, निकले सभी भुजंग।
मंजूषा जी ..यथार्थ ब्याँ खूबसूरत!!
आ.राजेश गुलिया जी हरेक दोहे में प्रेरक संदेश....बेहतरीन.सृजन
ReplyDeleteइस बँगले को देखकर , मत हो तू हैरान ।
इसकी खातिर खेत ने , खो दी है पहचान ।...उम्दा
हरी दूब की ओस पर, बिछा स्वर्ण कालीन
ReplyDeleteकोमल तलवों ने छुआ, नयन हुए शालीन...बहुत सुंदर
ऋता शेखर जी...बधाई
प्रोत्साहन हेतु आभार !
Deleteऋता
आ.कृष्णा वर्मा जी उम्दा भावाभिव्यक्ति!!
ReplyDeleteबेटी बिन सूना लगे ,विरस तीज-त्योहार
सूना रहता आँगना ,नहीं प्यार मनुहार।.....
आ.सविता जी बेहतरीन!!
ReplyDeleteबाती बटकर प्रेम की, भरो नेह का तेल
दीप जलाकर देख तू, सबसे होगा मेल ।...बधाई
हरी दूब की ओस पर, बिछा स्वर्ण कालीन
ReplyDeleteकोमल तलवों ने छुआ, नयन हुए शालीन...बहुत सुंदर
ऋता शेखर जी...बधाई
मंजूषा मन जी,राजेश गुलिया जी, ऋता शेखर जी, सविता जी बेहतरीन दोहों के लिए आप सबको बहुत-बहुत बधाई। मेरे दोहों को सहज साहित्य में स्थान देकर मेरा हौंसला बढ़ाने के लिए आदरणीय भाई काम्बोज जी आपका हृदय से आभार।
ReplyDeleteप्रोत्साहन हेतु आभार आपका!
Deleteऋता
एक से बढकर एक जीवन दुनिया की सच्चाई बताते काव्यमय दोहे बहुत अच्छे लगे ।सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई ।
ReplyDeleteBhai kamboj ji mere dohon ko yahan sthan dene aur protsahit karne ke liye haardik dhanyvaad isee tarah manobal badhate rtahiyega .sabhee dohe atydhik khobsoorat bhavon se paripoorn hain sabhee ko haardik badhaai .mere computer men aaj hindi nahee likh paa rahee hoon kshama karen .
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteमंजूषा जी ,राजपाल भैया , ऋता जी ,कृष्णा जी ,सविता जी
ReplyDeleteसभी दोहे अति उत्तम सार्थक सृजन ..बहुत आनंद आया पढ़कर
सभी को हार्दिक बधाई
प्रोत्साहन हेतु आभार !
Deleteऋता
थाम लिया पतवार खुद, चले सिंधु के पार।
ReplyDeleteमन में इक विश्वास ले, पार किया मझधार।।...बहुत सकारात्मक| बधाई पूर्णीमा जी|
--ऋता शेखर
झूठ सदा किसका चला , बता मुझे सरकार ।
ReplyDeleteचढ़ती हाँडी काठ की , कहाँ दूसरी बार ।...बहुत उम्दा !!
राजेश गुलिया जी को बधाई|
बेटी बिन सूना लगे ,विरस तीज-त्योहार
ReplyDeleteसूना रहता आँगना ,नहीं प्यार मनुहार।...बहुत सुन्दर| आ० कृष्णा जी को बधाई !
बाती बटकर प्रेम की, भरो नेह का तेल
ReplyDeleteदीप जलाकर देख तू, सबसे होगा मेल ।...सद्भावना का संदेश देता सुन्दर दोहा| सविता जी को बधाई|
मेरी रचना को स्थान देने के लिए आदरणीय हिमांशु भैया का आभार|
ReplyDeleteपरोत्साहन हेतु सभी मित्रों को धन्यवाद !!
*प्रोत्साहन*
Deleteएक से बढ़कर एक! यथार्थ को दर्शाते भावपूर्ण दोहों के सृजन हेतु मंजूषा जी, कृष्णा दीदी, ऋता जी, राजेश जी एवं सविता जी को हार्दिक बधाई !!!
ReplyDelete~सादर
अनिता ललित
बहुत सार्थक और सटीक दोहे हैं...सबको हार्दिक बधाई...|
ReplyDeleteगागर में सागर जैसे सभी दोहे, सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई !
ReplyDeleteसुन्दर दोहे, सबको बधाई
ReplyDeleteविविध भावों से परिपूर्ण बहुत ही सुन्दर दोहावली !
ReplyDeleteमंजूषा जी, कृष्णा दीदी, ऋता जी, राजेश जी एवं सविता जी को हार्दिक बधाई !!
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ReplyDeleteएक से बढ़कर एक...बहुत सार्थक और सटीक दोहे हैं...सबको हार्दिक बधाई !!!
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