थके न काँधे
कभी बोझ से किसी
दूर आ गया ,
तुम्हारे आँसुओं में
डूबा पाहन -मन । 1
पारदर्शी है-
तुम्हारा आचरण,
शुभ चिन्तन,
लोग देते ठोकरें
कितने हैं निर्मम ! 2
रोया नहीं मैं
कि पथ में शूल हैं,
नहीं झिझका
कि नभ में धूल है
या है कोई चुभन ।3
हों नैन गीले
टिका लो माथा यह
काँधे पे मेरे
प्रतिकूल है जग
मैं करूँगा सहन ।4
उसी ताप से-
पिंघल ,मैं जी लूँगा
खारे ही सही
भर ओक पी लूँगा
करके आचमन ।5
पास होते जो
तुम ,सब जानते
पहचानते
मैं भी रोया ,मानते
प्यार,अपनापन ।6
प्राण हो मेरे
अब न रोना कभी
आँसू तुम्हारे
हैं सागर पे भारी
घुमड़ते ये घन ।7
बहा जो नीर
कह गया था पीर
मैं था अधीर
बींध गया था मन
अधरों का कम्पन ।8
लो पोंछ आँखें
गर्म जल में जग
जाएगा जल
ऐसा चढ़ेगा ज्वार
डोलें धरा -गगन ।9
मोती ये तेरे
इनको खोना नहीं
यूँ रोना नहीं
लोग चाहते नहीं-
खिले कोई चमन ।10
-0-
pahli baar main taanka padh rahi, jaise haaiku bhi pahli baar aapse hin samjhi. sabhi haaiku bahut bhaavpurn...
ReplyDeleteरोया नहीं मैं
कि पथ में शूल हैं,
नहीं झिझका
कि नभ में धूल है
या है कोई चुभन
bahut shubhkaamnaayen aur badhai kamboj bhai.
बहा जो नीर, कह गया था पीर, मैं था अधीर, बींध गया था मन, अधरों का कम्पन,
ReplyDeleteमर्मस्पर्शी रचना…
छंद का बंधन भी, रोक ना पाया, भावों की उमड़न्…
कल कल छल छल कर, बहती जा रही है नदी तांका की।
यहाँ तो भावों की पवित्र बहती जा रही है और मन उनमें डूबता चला जा रहा है |
ReplyDeleteमन के भावों को अक्षरों की माला में पिरोना तो कोई आपसे सीखे !
जब कुछ और कहने को शब्द न मिलें तो एक ही शब्द सब कुछ कह देता है ....
वाह ! वाह !
मोती ये तेरे
इनको खोना नहीं
यूँ रोना नहीं
लोग चाहते नहीं-
खिले कोई चमन ।
आखिरी ताँका के जवाब में कुछ ऐसा कहा जा सकता है ...
आँसू जो मेरे
बन गए थे मोती
लिए सँभाल
जब साथ रब हो
लोगों की क्या मज़ाल !
यहाँ तो भावों की पवित्र धारा बहती जा रही है और मन उनमें डूबता चला जा रहा है |
ReplyDeleteमन के भावों को अक्षरों की माला में पिरोना तो कोई आपसे सीखे !
जब कुछ और कहने को शब्द न मिलें तो एक ही शब्द सब कुछ कह देता है ....
वाह ! वाह !
मोती ये तेरे
इनको खोना नहीं
यूँ रोना नहीं
लोग चाहते नहीं-
खिले कोई चमन ।
आखिरी ताँका के जवाब में कुछ ऐसा कहा जा सकता है ...
आँसू जो मेरे
बन गए थे मोती
लिए सँभाल
जब साथ रब हो
लोगों की क्या मज़ाल !
हों नैन गीले
ReplyDeleteटिका लो माथा यह
काँधे पे मेरे
प्रतिकूल है जग
मैं करूँगा सहन ।
shbd hai ki bhavna ki bunden.
man ke aangan me chham se kuden.
थके न काँधे
कभी बोझ से किसी
दूर आ गया ,
तुम्हारे आँसुओं में
डूबा पाहन -मन ।
aansun ki mar jeevan bhar yad rahti hai pr kabhi kabhi man patthar ho jata hai ya karna padta hai
is anmol khajane ke keliye kuchh bhi likhna mushkil hai.ambhavan
saader
rachana
मोती ये तेरे
ReplyDeleteइनको खोना नहीं
यूँ रोना नहीं
लोग चाहते नहीं-
खिले कोई चमन ।
is rachna ke liye mere paas shabd nahi han...lagta ha logon ki soch ko kore page par ukerkar jase unko hakikat ki paridhi men la khada kiya ....bahut2 badhai...
आपकी कलम से निकले ये ताँका गीत अनुपम हैं। आपका यह अनुपम सृजन निश्च्य ही नये लोगों में प्रेरणा फूंक रहा है… बधाई !
ReplyDeleteअद्भुत रचना !! बहुत ही सुन्दर भाव, "आँसू तुम्हारे हैं/ सागर पे भारी" "मोती ये तेरे / इनको खोना नहीं/ यूँ रोना नहीं"
ReplyDeleteaadarniy sir
ReplyDeletekya likhun-----
aapki xhanikaon neto man ke tar-tar baja diye
sari ki saari xhanikaye laybaddh si hokar ek dhara me baha le gai .aur main usme dubti utrati chali gai.
bahut hi behatreen
,shabdo ki moti aisi chuni
jaise koi nageena
kisi ek ki kya baat karun
har xhanikaye de rahi prerana.
bahut hi badhiya prastuti
hardik abhinadan
avam sadar naman
poonam
रोया नहीं मैं
ReplyDeleteकि पथ में शूल हैं,
नहीं झिझका
कि नभ में धूल है
या है कोई चुभन ।3
जीवन की सही राह दिखाती पंम्क्तियाँ।
मोती ये तेरे
इनको खोना नहीं
यूँ रोना नहीं
लोग चाहते नहीं-
खिले कोई चमन ।
पूरा गीत बहुत सुन्दर है। कम्बोज भाई ये ताँका गीत क्या होता है पहली बार सुना है। क्या इसके बारे मे भी कुछ बतायेंगे।? शुभकामनायें।
बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति के साथ आपने लाजवाब रचना लिखा है जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteएक एक शब्द को बहुत ही सुन्दरता से भावों में पिराया है. आपकी हर एक रचना से बहुत कुछ सीखती हूँ मैं. आंसुयों को अलग अलग भावों में बहुत सुंदर बांधा है आंसू सागर से भारी भी हैं और यही आंसू अनमोल मोती भी हैं. बहुत सुंदर लिखा है रामेश्वर भैया.
ReplyDeleteप्राण हो मेरे
अब न रोना कभी
आँसू तुम्हारे
हैं सागर पे भारी
घुमड़ते ये घन
मोती ये तेरे
इनको खोना नहीं
यूँ रोना नहीं
लोग चाहते नहीं-
खिले कोई चमन
सादर
अमिता कौंडल
एक एक शब्द को बहुत ही सुन्दरता से भावों में पिराया है. आपकी हर एक रचना से बहुत कुछ सीखती हूँ मैं. आंसुओं को अलग- अलग भावों में बहुत सुंदर बांधा है आंसू सागर से भारी भी हैं और यही आंसू अनमोल मोती भी हैं. बहुत सुंदर लिखा है रामेश्वर भैया.
ReplyDeleteप्राण हो मेरे
अब न रोना कभी
आँसू तुम्हारे
हैं सागर पे भारी
घुमड़ते ये घन
मोती ये तेरे
इनको खोना नहीं
यूँ रोना नहीं
लोग चाहते नहीं-
खिले कोई चमन
सादर
अमिता कौंडल
शब्दों के मोतियों से सजी यह माला ,भाव सरिता बन जो उमड़ी ,उमड़ती ही चली गयी। बहा गयी प्यार ,विरह और सांत्वना की त्रिवेणी। कितनी गहराई में डूबकर रची गयी है यह रचना। काव्य जगत को सुंदर रचना से माला माल करने वाली। वधाई रामेश्वर जी। पहली बार आप का लिखा कुछ पढ़ा। भाव विभोर हुई।
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर सृजन
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