नवगीत
रमेश गौतम
माँ मैं भी
दुनिया देखूँगी
देना दो
नयना ।
मेरा क्या है दोष
पक्ष माँ मेरा सुन लेती
जीवन देने से पहले
क्यों मृत्यु दण्ड देती
मेरा भी है
जन्म जरूरी
माँ सबसे
कहना ।
मेरी भी किलकारी से
गूँजे तेरा आँगन
मैं भी तो जानूँ होता है
माँ कैसा बचपन
राखी का अधिकार
मिले तो
कहलाऊँ बहना
।
सप्तपदी का मतलब
माता क्या रह जाएगा
बिन गुडि़या के गुड्डा कैसे
ब्याह रचाएगा
कन्यादान करो
तो पहनूँ
माँ बिछुए
गहना ।
आहत हल्दी, बिंदिया, चूड़ी
दर्पण का विश्वास
धरती ही न रही
करेगा, क्या केवल आकाश
मेरे बिना सफल
क्या कोई
अनुष्ठान
करना ।
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नारी-मन को बहुत सुन्दर ,सरल भाषा में बहुत-बहुत मोहक रूप में प्रस्तुत किया है | एक-एक पंक्ति सटीक ,अनुपम ...
ReplyDeleteआहत हल्दी, बिंदिया, चूड़ी
दर्पण का विश्वास
धरती ही न रही
करेगा, क्या केवल आकाश
मेरे बिना सफल
क्या कोई
अनुष्ठान करना ।..
इस सामयिक, सशक्त ,उत्कृष्ट रचना के लिए हृदय से बधाई ,नमन स्वीकार कीजिए | मेरा कहना है ...
कभी रागनी थी जीवन की ...कैसे ऊब गए , खारे से जल में खुशियों के ...सपने डूब गए ,जाने कैसे जान लिया फिर ...तुमने मेरा मन !
हृदय से सत्कार लेखनी ...शत-शत बार नमन !!
सादर
ज्योत्स्ना शर्मा
sunder marm sparshi kavita
ReplyDeletebadhai
rachana
सप्तपदी का मतलब
ReplyDeleteमाता क्या रह जाएगा
बिन गुडि़या के गुड्डा कैसे
ब्याह रचाएगा samaaj mein paap se juda eak dar bhi hai jo manushy ka hi kara dhar hai ..gahan soch ke saath -saath .aaj ke yatharth par prakaash daaltee behad sashakt, marmsparshee tatha khoobsurat rachna ...badhai
Bahut marmik...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना...बधाई...|
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