पथ के साथी

Friday, June 19, 2020

1010




1-कृष्णा वर्मा
1-कैसी यह जंग


कैसी यह जंग
कौन निगोड़े की
बददुआ कबूल हुई
वीरान हो रहा संसार
घर-घर पसरा दुख
रोने वालों से
छीन लिए उसने
सुकून भरे काँधे
उदासियों से
छीन लिया गले लग
ग़म हलका करने का अख़्तिया
हौसलों से छीन लिया
क़दम से क़दम मिलाकर
बढ़ने का जुनून
सफलताओं से छीन लिये
पीठ पर शाबाशी-भरे
हाथों की थपकियाँ
कैसी यह जंग
ख़ूनी रिश्तों को घेरा
खलाओं ने
जीवन और मृत्यु
खड़े हैं स्तब्ध
न जन्मे का स्वागत
न मरे को अलविदा
काल की रुखाई ने
छीन लिया अपनापा
किसे ख़बर कब थमेगा
यह अज़ाब का सिलसिला।
-0-

2-इंतकाम

दर्द जब हद से गुज़र जाए तो
ज़ुबान से विदा ले लेते हैं शब्द
और पनाह लेने लगती हैं
होंठों पे ख़ामोशियाँ
दर्द की बाढ़ में उफनता इंतकाम
तोड़ता है जब चुप्पियों का बाँध
तो लग जाती है गूँगे शब्दों को ज़ुबान
तल्खियों के सैलाब में डूब जाता है वजूद
नस-नस पोर-पोर में भर जाता है ज़हर
और टूट पड़ता रिश्तों पर क़हर
ढह जाते हैं ताल्लुक
तड़क जाते हैं रिश्ते
रिस जाता है अपनापा
ऐसी पड़ती हैं दरारें कि
सिकुड़ नहीं पातीं दूरियाँ
डूब के रह जाते हो तुम ऐसे तालाब में
जिसका कोई किनारा नहीं होता
बेहतर है
माफी का लंगर डालकर
निकाल लो
इंतकाम के भँवर में गहरे उतरती
रत की शिला को।
-0-
2- शशि पाधा
1-सीमाओं का रुदन  (मौन श्रद्धांजलि !)
  
सुनी किसी ने मौन सिसकियाँ 
सीमाएँ जब रोती हैं ।
वीर शहीदों की बलिवेदी 
अश्रु जल से धोती हैं ।
सीमाएँ तब रोती हैं ।

जिस माटी ने पाला-पोसा 
उस पे तन-मन वार दिया 
अंतिम साँसों की वेला में 
उसने प्यार दुलार दिया 
अमर सपूतों को भर गोदी 
 श्रद्धा माल पिरोती हैं ।
 सीमाएँ भी रोती हैं ।

छल का राक्षस करता तांडव 
रक्त नदी की धार चली  
नत मस्तक हैं उन्नत पर्वत 
माँग सिंदूरी गई छली 
 शून्य भेदती बूढ़ी ऑंखें 
          आँचल छोर भिगोती हैं ।
           सीमाएँ तब रोती हैं ।

धीर बाँध अब टूटे उनके 
ढाढ़स कौन बंधाएगा 
कोई गाँधी बुद्ध महात्म
जाने कब तक आएगा 
गिरह बाँधे बीज अमन के 
 मन मरुथल में बोती हैं ।
  सीमाएँ भी रोती हैं ।

शीशों के घर रहने वालो 
काँच-काँच अब बिखरेगा 
भारत माँ की रक्षा करने 
सिंह प्रतिकारी गरजेगा  
गगन भेदती ललकारों में   
            देती आज चुनौती हैं ।
           सीमाएँ क्यों रोती हैं !!!
-0-

12 comments:

  1. कृष्णा जी की कविता कैसी यह जंग और इंतकाम अनेक भावों से भरी हैं तल्खियों के सैलाब में डूब जाता है वजूद ...सुन्दर भाव और शब्द हैं हार्दिक बधाई |
    शशि जी की कविता 'सीमाओं का रुदन' देश प्रेम की कविता है खूबसूरत पंक्तियाँ हैं ...गिरह बांधे बीज अमन के ....बहुत गहरी बात कह दी इस कविता में शशि जी हार्दिक बधाई |

    ReplyDelete
  2. युद्ध की वीभत्सता को दर्शाती और शांति की पुकार करतीं कृष्णा वर्मा जी और शशि पाधा जी की कविताएँ मन को झकझोर गईं। सुंदर अभिव्यक्ति के लिए आप दोनों को हार्दिक बधाई ।

    ReplyDelete
  3. समकालीन हालात का सुंदर चित्रण करती रचनाओं के लिए कृष्णा वर्मा जी एवं शशि पाधा जी को हार्दिक बधाई।
    -परमजीत कौर 'रीत'

    ReplyDelete
  4. न जन्मे का स्वागत/न मरे को अलविदा......किसे ख़बर कब थमेगा / यह अज़ाब का सिलसिला।
    माफी का लंगर डालकर
    आँचल छोर भिगोती हैं / सीमाएँ तब रोती हैं ।
    बहुत सुंदर ...
    कृष्णा जी एवं शशि को हार्दिक बधाइयाँ

    ReplyDelete
  5. वर्तमान स्थितियों का प्रभावशाली चित्रण किया है कृष्णा जी एवं शशि जी ने,आप दोनों को हार्दिक बधाई ।

    ReplyDelete
  6. बहुत बढ़िया

    ReplyDelete
  7. देश प्रेम की बहुत बढ़िया रचना... शशि जी बहुत बधाई।

    ReplyDelete
  8. मेरी रचनाओं को यहाँ सांझा करने के लिए आ० भाई काम्बोज जी का हार्दिक धन्यवाद।
    मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए आप सभी मित्रों का हृदय से आभार।

    ReplyDelete
  9. वाह! तीनों ही रचनाएँ सुंदर भाव लिए...कृष्णाजी और शशि जी को हार्दिक बधाई।

    ReplyDelete
  10. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार(२१ -०६-२०२०) को शब्द-सृजन-26 'क्षणभंगुर' (चर्चा अंक-३७३९) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    ReplyDelete
  11. बहुत शानदार सृजन है ।

    ReplyDelete
  12. सभी रचनाएँ कमाल, हृदय को भीतर तक छूने वाली ...आद.कृष्णाजी और आद.शशि जी को हार्दिक बधाई !!

    ReplyDelete