पथ के साथी

Thursday, October 30, 2008

हाइकु छंद

हाइकु छंद को विद्यालयों की पाठ्य पुस्तकों में वरीयता देने की मांगफरीदाबाद। भारत में जापानी छंद के नाम से प्रसिद्ध हाइकु का भारतीयकरण करने वाले तथा उसे तुकाइकु रूप देने में समर्थ एवं सक्षम जयभगवान गुप्त राकेश ने देश के तमाम विश्वविद्यालयों एवं साहित्यकारों से हाइकु छंद को विद्यालयों की पाठ्यपुस्तकों में वरीयता प्रदान करने की मांग की है। विगत दस वषो से हाइकु के प्रचार-प्रसार में जुटे श्री राकेश ने यह मांग हाइकु दिवस पर आयोजित एक विशेष गोष्ठी में रखी। श्री राकेश ने कहा कि हाइकु इन दिनों में लगातार लोकप्रिय होता जा रहा है और दिन-प्रतिदिन इसके रचनाकारों की संख्या बढ़ती जा रही है। यहां तक कि जो लोग पहले से हाइकु लिखते आ रहे थे लेकिन बीच में इसे भुला दिया था इनकी प्रेरणा से अब वे लोग भी सक्रिय हो गए हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि जहां लोग हाइकु के विषय में प्रश्नसूचक चिन्ह लगाते थे वे अब आम बात भी हाइकु में लिखकर कर रहे हैं। इसका प्रमाण श्री राकेश द्वारा संपादित हिन्दी साप्ताहिक स्वर्ण जयंती प्रतिबिम्ब के अनेक विशेषांक हैं जिनमें ४० से भी अधिक हाइकुकारों ने अपने हाइकु भेजकर इसके प्रति रुचि जताई है। हाइकु गोष्ठी की मुख्य अतिथि डॉ. सुदर्शन रत्नाकर ने यह रहस्योद्घाटन करते हुए सबको चौंका दिया कि वे १९८८ से हाइकु रचना में व्यस्त हैं और उनका पहला हाइकु –मोती ही मोती, चुन लो सागर से, लगा डुबकी— आज भी उन्हें कंठस्थ है और यह कई पत्र-पत्रिकाओं में पुरस्कृत भी हो चुका है, किन्तु वे इधर कहानी व उपन्यास लेखन में व्यस्त हो गई थीं अन्यथा उनकी भी अब तक कई पुस्तकें हाइकु पर आ चुकी होतीं।

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